जन्मदिन विशेष: जानिए कैसे कौल से नेहरू हो गए जवाहरलाल
आज देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती है। नेहरू एक वैश्विक नेता थे। उनकी पहचान तमाम कारणों से होती है। बच्चों के बीच चाचा नेहरू के नाम से विख्यात तो अपनी विद्वत्ता के कारण ‘पंडित’ नेहरू के नाम से विख्यात हुए। लेकिन कितने लोगों को पता है कि उनके नाम में, जवाहर लाल के साथ लगने वाला ‘नेहरू’ वास्तविकता में उनका या उनके परिवार का अंतिम नाम नहीं था। फिर ये नेहरू कहां से आया और लग गया उनके नाम के साथ? जानना चाहते हैं तो इस रोचक किस्से को पढ़िए।
नहर के किनारे रहने से बने नेहरू
जवाहर लाल नेहरू एक कश्मीर पंडित समुदाय से आते थे। उनके पूर्वज आज से करीब तीन सौ साल पहले कश्मीर घाटी में रहते थे। उस वक्त घाटी में रहने वाले पंडित लोगों की (स्थानीय शासकों की जरूरत के कारण) कोशिश संस्कृत के साथ-साथ पारसी सीखने की भी रहती थी। कहते हैं दिल्ली में मुगल बादशाह फरुखसियार की नजर जवाहर लाल के पूर्वज राज कौल पर पड़ी और फिर राज कौल दिल्ली आ गए। दिल्ली में राज कौल को एक जागीर दी गई जिसमें उनका घर एक नहर की किनारे था। इसी नहर के कारण उनके सरनेम में नेहरू जुड़ गया।
स्वयं नेहरू ने बताई है यह कहानी
इस किस्से को पंडित नेहरू ने स्वयं अपनी जीवनी ‘मेरी कहानी’ में कुछ यूं लिखा है "हम कश्मीरी (पंडित) थे/हैं। लगभग दो सौ वर्ष पूर्व, 18वीं सदी में हमारे पूर्वज पर्वत-घाटियों को छोड़कर समृद्ध मैदानों में आ बसे। औरंगज़ेब की मौत के बाद ये मुग़ल बादशाहत के पतन के दिन थे। फरुखसियार मुग़ल बादशाह बना। उस वक़्त राज कौल हमारे पूर्वज थे। वे संस्कृत और पारसी के बड़े विद्वान थे। फरुखसियार की कश्मीर यात्रा के दौरान वे उनकी (बादशाह) की नज़रों में आए। संभवतः फरुखसियार की इच्छा के कारण ही हमारे परिवार ने दिल्ली का रुख़ किया। ये सन 1716 की बात है। राज कौल को एक जागीर दी गई जिसमें उनका घर एक नहर (Canal) के किनारे था। बस इसी 'नहर' के बगल में रहने के कारण राज कौल के नाम में नहर से नेहरू जुड़ गया। आगे फिर बीतते हुए समय के साथ कौल पीछे छूट गया और हम रह गए नेहरू!"