गृह सचिव राजीव महर्षि पर धांधली का आरोप
इन कागजातों से यह स्पष्ट होता है कि राजीव महर्षि ने राजस्थान के मुख्य सचिव रहते हुए एक करोड़ रुपये से अधिक के आयकर से बचने के लिए अपनी गैर-कृषि योग्य जमीन को कृषि योग्य जमीन में तब्दील करने के लिए धांधली की। प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत कैबिनेट सचिवालय की सतर्कता शाखा ने भी इस शिकायत का संज्ञान लिया है। खबर है कि वह भी अपनी तरफ से इस धांधली की जांच करने जा रही है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) भी इसकी जांच कर रही है और राजस्थान सरकार ने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एस.के. गर्ग से इस मामले की जांच करने को कहा है। देश के शीर्ष नौकरशाह के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला बेहद गंभीर है। इस मसले को संसद के भीतर उठाने की तैयारी कर रहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद डी. राजा ने आउटलुक को बताया, 'देश के शीर्ष नौकरशाह के खिलाफ धांधली का केस सामने आना बेहद गंभीर मामला है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। गृह सचिव का पद देश के लिए बेहद अहम है और केंद्र सरकार को इसमें संजीदगी दिखानी चाहिए।’
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और वित्त मंत्री अरुण जेटली के करीबी माने जाने वाले राजीव महर्षि को 31 अगस्त 2015 को केंद्रीय गृह सचिव बनाया गया। तमाम दस्तावेजों के साथ राजीव महर्षि पर ये आरोप ठीक उसी समय लगाए गए, जब उन्हें गृह सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जाना था। इस धांधली को सामने लाने का साहसिक काम किया राजस्थान में बीकानेर के सूचना के अधिकार कार्यकर्ता गोवर्धन सिंह ने। गोवर्धन सिंह 2014 से इस धांधली का पर्दाफाश करने में लगे हुए थे और उन्होंने इस धांधली से संबंधित सारे कागजात सूचना के अधिकार के तहत हासिल किए।
सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करने वाले गोवर्धन का आरोप है कि रिव्यू याचिका का समय निकल गया था, इसलिए पहले जो याचिका दाखिल की गई उसमें 7.09.2014 की तारीख दर्ज थी, जिसे बाद में काटकर 30.03.2014 कर दिया गया। इसका एक पुख्ता प्रमाण भी सूचना के अधिकार के तहत मिला। राजीव महर्षि की पत्नी मीरा महर्षि के हस्ताक्षर से समयावधि अधिनियम मियाद में छूट प्रदान करने के बाबत जो आवेदन 30.03.2014 की तारीख से जमा किया गया है, उसके 5वें बिंदु में जेडीए के 26.08.2014 के फैसले का उल्लेख है। अब सीधा सवाल है कि यह आवेदन 30 मार्च 2014 को किया गया था तो इसमें 26 अगस्त 2014 के फैसले का जिक्र कैसे हो सकता है (देखें बॉक्स)।
यह गड़बड़ी पीठासीन अधिकारी बी.एल. यादव द्वारा 17.10.2014 को राजीव महर्षि के पक्ष में दिए गए फैसले में भी दिखाई देती है। इस फैसले के दूसरे पन्ने पर बाकायदा लिखा है, 'उक्तनिर्णय से व्यथित होकर प्रार्थीया द्वारा रिव्यू प्रार्थना पत्र दिनांक 07.09.14 को पुन: कलक्टर मुद्रांक द्वितीय के न्यायालय में दायर किया।’ इस तरह फैसले से लेकर खुद मीरा महर्षि के आवेदन तक से यह जाहिर है कि तारीखों में हेर-फेर किया गया है ताकि किसी तरह कर देने से बचा जा सके।
इन आरोपों के बारे में आउटलुक के सवालों का जवाब, खबर लिखे जाने तक गृह सचिव से हासिल नहीं हो सका। हालांकि इससे पहले वह मीडिया में इन तमाम आरोपों को सिरे से नकार चुके हैं। उनका कहना है कि जांच चल रही है, सच्चाई सामने आ जाएगी। उनका कहना है कि यह मेरे और खरीदार के बीच का मामला है कि जमीन कृषि योग्य है या गैर कृषि। समयावधि को बढ़ाने का आवेदन करना भी बहुत सामान्य बात है। उधर धांधली का यह मामला आने वाले दिनों में तूल पकड़ सकता है। सांसद डी.राजा के अलावा यह मसला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक भी पहुंच गया है।
सूचना के अधिकार कार्यकर्ता गोवर्धन ने आउटलुक को बताया कि देश का गृह सचिव इस तरह की धांधली में लिप्त है तो देश में कानून-व्यवस्था कैसे ठीक रहेगी। यह गंभीर अपराध है, मूल्यवान प्रतिभूमि के दस्तावेज में जालसाजी करना आईपीसी की 467 धारा के तहत अपराध है। इसकी सजा उम्र कैद तक है। मामला सिर्फ एक करोड़ कुछ लाख रुपये की कर चोरी का ही नहीं है, मामला है फायदा पहुंचाने के लिए जालसाजी करना। गोवर्धन सिंह का मानना है कि इस जालसाजी और धांधली में जितने लोग भी शामिल हैं, सबके खिलाफ मामला बनना चाहिए।
राजस्थान के सेवानिवृत्त जस्टिस इस मामले की जांच कर रहे हैं, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) इसकी तफ्तीश कर रही है और अब प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत कैबिनेट सचिवालय की सतर्कता शाखा तक भी मामला पहुंचा है। सवाल है कि देश के शीर्ष नौकरशाह के खिलाफ निष्पक्ष जांच करने में क्या वाकई हमारी एजेंसियां सक्षम हैं।
क्या है मामला
> राजीव महर्षि और उनकी आईएएस पत्नी मीरा महर्षि ने वर्ष 2006 में जयपुर के आमेर जिले में करीब 10 बीघा जमीन 25 लाख रुपये में खरीदी, जिसमें नाले की जमीन भी शामिल थी। जबकि कायदे से नदी-नाले की जमीन नहीं बेची जा सकती।
> फिर 22.11.2012 को इस भूमि को कृषि भूमि से गैर-कृषि प्रयोजनार्थ में तब्दील करने के लिए भू-राजस्व अधिनियम की धारा 90 ए के तहत एक आवेदन दिया। जयपुर विकास प्राधिकरण ने इस तब्दीली की मंजूरी 13.12.2012 को दे दी। 21.11.2013 को यह सारी जमीन एक कंपनी को पांच करोड़ रुपये में बेच दी गई। इसमें गैर मुमकिन नाले की जमीन भी शामिल थी। आमेर के रजिस्ट्रार द्वारा इसे गैर कृषि भूमि मानकर डीएलसी दर से कुल कीमत छह करोड़ 10 लाख रुपये मानकर स्टॉम्प ड्यूटी तय की गई।
> इसके बाद 20.02.2014 को जयपुर में कलक्टर न्यायालय में इस गैर कृषि भूमि को कृषि भूमि माने जाने का आवेदन किया गया जिसे 26.03.2014 को पीठासीन अधिकारी ज्योति चौहान ने खारिज कर दिया।
> 05.08.2014 को ज्योति का ट्रांसफर कर दिया गया और उनकी जगह बाबूलाल यादव की नियुक्ति हुई। इसी बीच 15 जुलाई 2014 को रजिस्ट्री दफ्तर में एक शुद्धिपत्र पेश किया गया, जिसमें कहा गया कि गैर-कृषि भूमि को विलोपित किया जाए।
> उस समय राजीव महर्षि राजस्थान के मुख्य सचिव थे। भू-उपयोग बदलने की सारी कवायद इसलिए की जा रही थी कि उन्होंने पांच करोड़ रुपये में अपने जमीन बेची थी, उस पर उन्हें पूंजी लाभ का कर चुकाने का आयकर विभाग से नोटिस आया था। गैर-कृषि भूमि की बिक्री पर करीब एक करोड़ रुपये का भुगतान उन्हें करना था। इस भुगतान से बचने के लिए उन्हें अपनी गैर कृषि भूमि, जिसका सौदा वह 2013 में कर चुके थे, उसे वापस कृषि योग्य भूमि दिखाना था।
> ऐसे में पीठासीन अधिकारी द्वारा उनकी अपील खारिज करने से उन्हें परेशानी हो गई। कायदे से इसकी रिव्यू पीटिशन खारिज होने के 30 दिन बाद ही दाखिल होना चाहिए था। आरोप यह है कि ऐसा नहीं किया गया और बाद में इसमें धांधली की गई। सितंबर 2014 को मियाद में छूट प्रदान करने के लिए आवेदन किया गया।