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22 May 2016

बहस शुरु, क्या जल को समवर्ती सूची में शामिल कर लिया जाए

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इनोवेटिव इंडिया फाउंडेशन के संयोजक सुधीर जैन ने कहा कि जल का विषय किसके पास रहे, इसके लेकर अस्पष्टता रही है। जल के बारे में यह अस्पष्टता, प्रश्न करने वाले यक्ष और जवाब देने वाले पाण्डु पुत्रों के बीच हुई बहस का भी मुद्दा रही थी। और वह सवाल आज भी कायम हैं कि कौन सा पानी किसका है ? बारिश की बूंदों पर किसका हक है? नदी-समुद्र का पानी किसका है? तल, भूतल, सतह, पाताल का पानी किसका है? सरकार का पानी पर स्वामित्व है या वह सिर्फ ट्रस्टी है? यदि ट्रस्टी, सौंपी गई सम्पत्ति की ठीक से देखभाल न करे, तो क्या हमें हक है कि हम ट्रस्टी बदल दें? पानी की हकदारी को लेकर उठे सवालों के बीच जल संसाधन सम्बन्धी संसद की एक स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में पानी को समवर्ती सूची में शामिल करने की बात को आगे बढ़ाया है। इसके अलावा कई वर्गो का भी मत है कि यदि पानी पर राज्यों के बदले, केन्द्र का अधिकार हो, तो बाढ़-सुखाड़ जैसी स्थितियों से बेहतर ढंग से निपटना सम्भव होगा। लेकिन सवाल उठता है कि क्या वाकई यह होगा?  

पर्यावरणविद उमा राउत ने कहा कि हमें जल को समवर्ती सूची के अंतर्गत ले लेना चाहिये ताकि केंद्र के हाथ में कुछ संवैधानिक शक्ति आ जायें। इससे देश में जल से जुड़ी समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी। बुंदेलखंड विकास मोर्चा के आशीष सागर ने कहा कि हमारे सामने यह यक्ष प्रश्न है कि बाढ़ और सूखे से निपटने में राज्य क्या वाकई बाधक हैं? पानी के प्रबंधन का विकेन्द्रित होना अच्छा है या केन्द्रीकरण होना? समवर्ती सूची में आने से पानी पर एकाधिकार, तानाशाही बढ़ेगी या घटेगी? बाजार का रास्ता आसान हो जाएगा या कठिन? वर्तमान संवैधानिक स्थिति के अनुसार जमीन के नीचे का पानी उसका है, जिसकी जमीन है। सतही जल के मामले में अलग-अलग राज्यों में थोड़ी भिन्नता जरूर है, किन्तु सामान्य नियम है कि निजी भूमि पर बनी जल संरचना का मालिक, निजी भूमिधर होता है। इस तरह आज की संवैधानिक स्थिति में पानी, राज्य का विषय है। केन्द्र सरकार, पानी को लेकर राज्यों को मार्गदर्शन निर्देश जारी कर सकती है और पानी को लेकर केन्द्रीय जलनीति व केन्द्रीय जल कानून बना सकती है, लेकिन उसे पूरी तरह मानने के लिये राज्य सरकारों को बाध्य नहीं कर सकती।

उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता अशोक के सिंह ने कहा कि राज्य अपनी स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों के मुताबिक बदलाव करने के लिये संवैधानिक रूप से स्वतंत्र हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा जल रोकथाम एवं नियंत्रण कानून-1974 की धारा 58 के तहत केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केन्द्रीय भूजल बोर्ड और केन्द्रीय जल आयोग का गठन किया गया। इसकी धारा 61 केन्द्र को केन्द्रीय भूजल बोर्ड आदि के पुनर्गठन का अधिकार देती है और धारा 63 जल सम्बन्धी ऐसे केन्द्रीय बोर्ड के लिये नियम-कायदे बनाने का अधिकार केन्द्र के पास सुरक्षित करती है।

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TAGS: भूजल स्तर, लगातार गिरावट, बुनियादी सुविधाओं, जलवायु परिवर्तन, देश के 20 राज्य, संविधान, debat on water, constitution, climate change, ground water, basic facility
OUTLOOK 22 May, 2016
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