'मतपत्रों के इस्तेमाल के लिए कानून में बदलाव की जरूरत नहीं'
सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या पारम्परिक व्यवस्था की तरफ लौटने के लिए कानून में बदलाव करने की जरूरत है।
कांग्रेस, बसपा और आम आदमी पार्टी भविष्य में चुनावों के लिए पारम्परिक मतपत्रों और मतपेटियों के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं। इन दलों का कहना है कि हाल में हुए विधानसभा चुनावों के बाद इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता खतरे में पड़ गई है।
यह पूछने पर कि क्या मतपत्र व्यवस्था फिर से लागू करने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन की जरूरत है तो चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कानून में वोट डालने के लिए ईवीएम और मतपत्र दोनों का इस्तेमाल करने का प्रावधान है।
अधिकारी ने कहा कि कानून में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है और यह आयोग का विशेषाधिकार है कि वह निर्णय ले कि ईवीएम का इस्तेमाल हो या मतपत्र का।
चुनाव आयोग के एक अन्य अधिकारी ने बताया, अब तक हुए चुनावों में ईवीएम महत्वपूर्ण रहा है। लोगों के वोट डालने के लिए वे ज्यादा विश्वसनीय और सुरक्षित माध्यम हैं। मशीनों के आने के बाद चीजें काफी तेज और ज्यादा सुगम हो गई हैं।
चुनाव आयोग 2009 की तरह ही एक बार फिर आने वाले दिनों में विभिन्न पक्षों और अन्य को आमंत्रित करने और ईवीएम को हैक करने का निमंत्रण देने पर विचार कर रहा है। चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने नेताओं और अन्य को आमंत्रित कर यह दिखाने को कहने की योजना बनाई है कि ईवीएम से छेड़छाड़ कर दिखाएं।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम :1951: में 1988 में संशोधन किया गया और इसमें ईवीएम के प्रयोग को शामिल किया गया। नयी धारा 61ए ने स्पष्ट किया कि जब भी किसी चुनाव में इस तरह की वोटिंग मशीन का इस्तेमाल होगा तो कानून या नियमों में मतपेटी या मतपत्र के जिक्र को ईवीएम के संदर्भ में लिया जाएगा।
इस प्रकार कानून के तहत ईवीएम और मतपत्र दोनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। भाषा