मधुशालाओं के दम से भरती सरकारों की झोली
हालांकि शराब खुद माल्या की भी सगी नहीं हुई और आखिरकार उन्हें उसी कंपनी यूनाइटेड स्प्रिट लिमिटेड से बेआबरू होकर निकलने पर मजबूर होना पड़ा जिसे बुलंदियों तक पहुंचाने में उन्होंने जमीन-आसमान एक कर दिया। इस कंपनी की मालिक अब ब्रिटेन की बहुराष्ट्रीय कंपनी डियाजियो है और माल्या को अनियमितताओं के आरोप में कंपनी छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया गया। माल्या को बैंकों द्वारा किंगफिशर एयरलाइन शुरू करने के लिए दिए गए कर्ज की वसूली की प्रक्रिया जब शुरू की गई तो माल्या ने देश ही छोड़ दिया। विजय माल्या के पिता विट्ठल माल्या ने देश में पहली बार भारत निर्मित विदेशी शराब का उत्पादन किया था और आज पूरे देश में ऐसे ब्रांडों की भरमार है जिन्हें 'भारत निर्मित विदेशी शराब’ का दर्जा हासिल है। लेकिन हमारा यह आलेख माल्या के बारे में नहीं है। यह आलेख है उस धंधे के बारे में जिसके बारे में कहा जाता है कि वह फिलहाल पूरे देश में डेढ़ लाख करोड़ रुपये का सालाना आंकड़ा पार कर चुका है और खुद उद्योग चैंबर एसोचैम का अनुमान है कि यह धंधा 30 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। यह ऐसा धंधा है जो इसके कारोबारियों के साथ-साथ राज्य सरकारों, नेताओं, सरकारी सुरक्षा कर्मियों और चंद ठेकेदारों को इस कदर मालामाल कर देता है जिससे एक छोटा-मोटा दुकानदार भी पोंटी चड्ढा जैसा करोड़पति कारोबारी बन जाता है। बस आपको इस धंधे के गुर आने चाहिए। यह ऐसा धंधा है जिससे चाहे भारतीय संस्कृति की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकारें हों या समाजवाद की बात करने वाली सरकार, सभी गले लगाने को तैयार रहती हैं। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि में भाजपा की सरकारें शराब से होने वाली कमाई बढ़ाने का पूरा प्रयास कर रही हैं। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार ने शराब की कीमतों में कटौती कर दी है। एक अप्रैल से प्रदेश में शराब कम कीमत पर मिलेगी। इसके लिए बाकायदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के दौरान यह घोषणा की थी कि हर चीज महंगी हो गई है यहां तक कि शाम की दवा भी महंगी हो गई। इसी को ध्यान में रखते हुए अखिलेश ने कैबिनेट में बाकायदा प्रस्ताव लाकर कीमतों में कटौती की है। अखिलेश कहते हैं कि सरकार ने जो अपना वायदा किया था उसे पूरा किया। वह कहते हैं कि शराब की कीमतें कम करने का मतलब यह नहीं है कि शराब पीने वालों को प्रोत्साहित किया जा रहा है बल्कि शराब को लेकर सरकार की एक नीति है और इसमें बदलाव किया गया है।
एसोचैम की मानें तो भारत में आज शराब की खपत 19 अरब लीटर सालाना है और इससे हर वर्ष करीब 1.45 लाख करोड़ रुपये का कारोबार होता है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा शराब का बाजार है और यह सबसे तेजी से बढ़ता बाजार भी है। यह पूरी दुनिया में व्हिस्की का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत में कुल शराब खपत में 80 प्रतिशत हिस्सा देसी-विदेशी व्हिस्की का है। भारतीय उपभोक्ताओं में विदेशी शराब की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है जिसके कारण देश में शराब के विदेशी ब्रांडों की धूम मची हुई है। यूं तो देश में शराब की खपत का कोई तय मानक नहीं है फिर भी कंपनियों द्वारा समय-समय पर जारी किए जाने वाले आंकड़ों से पता चलता है कि देश में भारत निर्मित विदेशी शराब की खपत करीब 36 फीसदी है और इसका मुख्य बाजार दक्षिण भारत है जबकि आयातित विदेशी शराब का बाजार हिस्सा सिर्फ 3 फीसदी है और इसकी खपत मुख्यत: देश के महानगरों में ही होती है। बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी करीब 48 फीसदी देसी दारू की है जो पूरे देश में एक समान बिकती है जबकि 13 फीसदी हिस्सेदारी बीयर की है जो देश के शहरी क्षेत्र का मुख्य पेय बनता जा रहा है। देश में सबसे अधिक बिकने वाले 140 शराब ब्रांडों पर सिर्फ एक कंपनी यूनाइटेड स्प्रिट्स लिमिटेड का अधिकार है और कंपनी के मैकडोवल्स नंबर 1, रॉयल चैलेंज, ब्लैक डॉग, सिग्नेचर एंटीक्वीटी जैसे ब्रांडों ने देश के शराब बाजार का 60 फीसदी हिस्सा कब्जा रखा है। इसी प्रकार बीयर के बाजार में यूनाइटेड ब्रिवरीज के किंगफिशर ब्रांड का कब्जा है।
सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत में शराब बिक्री का ये हाल तब है जबकि यहां शराब पूरी दुनिया से कई गुना ज्यादा दाम पर बिकती है। शराब से होने वाली आमदनी का एक छोटा सा उदाहरण यह है कि दो साल पहले तक विभिन्न राज्य सरकार के कुल राजस्व प्राप्ति का करीब 16 फीसदी हिस्सा शराब से प्राप्त होने वाले टैक्स से आता था। अब दो साल बाद यह कमाई कुछ और बढ़ ही गई होगी। हालांकि एसोचैम की रिपोर्ट यह नहीं बताती कि देश के घरेलू नशीले उत्पाद मसलन ताड़ी, महुआ, नीरा, फेनी आदि का हिस्सा शराब के कारोबार में कितना है, मगर धंधे के जानकार बताते हैं गरीब तबके में अंग्रेजी या देसी दारू के बजाय इन्हीं घरेलू नशीले उत्पादों की खपत ज्यादा है।
आखिर गुजरात, नगालैंड या मणिपुर की तरह अन्य राज्य सरकारें शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध क्यों नहीं लगातीं। नेताओं से पूछिए तो कहेंगे कि लोग शराब पीना चाहते हैं तो हम क्या करें। इसलिए हम उसपर मोटा टैक्स लगाते हैं ताकि लोग इससे दूर रहें। मगर क्या सचमुच ऐसा होता है। आंकड़े इसकी गवाही नहीं देते। उदाहरण के लिए देश में शराब से सबसे अधिक पैसा तमिलनाडु सरकार कमा रही है। तमिलनाडु सरकार को शराब पर टैक्स से एक साल में 21 हजार 800 करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई है। कोई भी सरकार इस कमाई को कैसे छोड़ सकती है। तमिलनाडु ही नहीं, केरल और कर्नाटक में सरकार की कमाई का 20 फीसदी हिस्सा शराब से आ रहा है। केरल ने तो खैर शराब पर आंशिक प्रतिबंध की घोषणा की है मगर कर्नाटक सरकार तो खुद शराब के थोक कारोबार में शामिल है।
देश ही नहीं, पूरे एशिया में शराब बनाने वाली सबसे पहली कंपनी मोहन मीकिंस के मुखिया विनय मोहन आउटलुक से विशेष बातचीत में बताते हैं कि भारत में शराब का उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य में जमीन आसमान का फर्क है और यह फर्क मुख्यत: इस वजह से है कि राज्य सरकारें अल्कोहल के खपत को प्रोत्साहित नहीं करतीं इसलिए इस पर बेहिसाब टैक्स लगाया जाता है। चूंकि शराब पूरी तरह राज्यों का विषय है इसलिए इसपर अलग-अलग राज्य सरकारों की मनमर्जी चलती है। अलग-अलग राज्यों में टैक्स की दरें अलग-अलग होने के कारण दामों में भी भारी फर्क हो जाता है। विनय मोहन कहते हैं कि देश की कुछ सरकारों ने शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है मगर इसके कारण वहां शराब की खपत बंद हो गई हो, ऐसा नहीं है। यह मानव स्वभाव है कि आप किसी चीज के प्रति दबाएंगे तो लोग चोरी-छिपे वह काम करेंगे।
देश के कई हिस्सों में शराब का अवैध कारोबार इसी वजह से पनप रहा है और इसी वजह से इस धंधे में पुलिस वालों का प्रवेश होता है। कम कीमत वाले राज्य से अधिक कीमत वाले राज्य में शराब की तस्करी में पुलिस वालों की खुली भूमिका सामने आती रही है। उदाहरण के लिए राजस्थान में शराब महंगी है जबकि पंजाब और हरियाणा में सस्ती तो इन दोनों राज्यों से जमकर शराब की तस्करी राजस्थान और वहां से पूर्ण नशाबंदी वाले गुजरात में होती है। राजस्थान पुलिस के आंकड़े इसके गवाह हैं। इनके मुताबिक साल 2015 में प्रदेश में अवैध शराब के 14,617 मामले दर्ज कर 14,706 लोगों को गिरफ्तार कर उनसे 14 लाख 85 हजार 286 बोतल अंग्रेजी, दो लाख 48 हजार 909 बोतल देसी और दो लाख 61 हजार 133 बोतल बीयर के साथ कच्ची शराब बरामद की गई। यह वे आंकड़े हैं जो दर्ज किए गए हैं, न पकड़े गए आंकड़े की सिर्फ कल्पना की जा सकती है। राजस्थान में अवैध शराब करोबारियों का समानांतर तंत्र खड़ा हो चुका है। सब जानते हैं कि इसको पुलिस से लेकर राजनेताओं तक का संरक्षण प्राप्त है। राजस्थान के कई जिले अवैध शराब के इस काले धंधे के गढ़ बन गए है। शराब के कारोबार में पुलिस की भूमिका इतनी खास हो गई है कि कई बार पुलिस वाले आपके घर पर भी पहुंच जाते हैं और यदि आपने तय मात्रा से एक बोतल भी ज्यादा घर में रखी तो रिश्वत चुकाने के लिए तैयार रहिए। महाराष्ट्र जैसे राज्य में तो अब घर में शराब रखने के लिए लाइसेंस की जरूरत है। ऐसे में कौन लाइसेंस लेकर शराब खरीदने जाएगा, जाहिर है कि ऐसे में पुलिस वालों की अवैध कमाई जमकर हो रही है।
संस्कारों की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले मध्य प्रदेश में सेल्स टैक्स, परिवहन, माइनिंग और वन जैसे महकमों की आय घटी है वहीं आबकारी विभाग की आय निरंतर बढ़ रही है। जहां 2003-04 में मप्र सरकार को शराब पर टैक्स से करीब आठ सौ करोड़ की आय हुई थी वहीं इस साल के अंत तक यह करीब 8 हजार करोड़ सालाना हो जाएगी। दिग्विजय शासनकाल के आखिरी साल को छोड़ दिया जाए तो शराब से होने वाली आय प्रदेश में लगातार बढ़ती रही है। दिग्गी शासनकाल में आय घटने की वजह शराब की खपत में कमी आने के कारण नहीं थी। दरअसल, उस दौर में शराब माफिया का मुनाफा ज्यादा बढ़ गया था। जहां तक मप्र में शराब की खपत का सवाल है तो यह साल दर साल बढ़ी है। 2002-03 में जहां देशी शराब की खपत 390.58 लाख लीटर और विदेशी शराब की खपत 350 लाख लीटर थी वहीं मार्च 2015 तक 1103.69 लाख लीटर देशी तथा 1439.77 लाख लीटर विदेशी की खपत होने लगी। यानी मोटे तौर पर बारह सालों में खपत चार गुना और शराब से होने वाली आय दस गुना बढ़ गई है। आबकारी विभाग के अफसर बताते हैं कि मप्र में उत्पादित और बिकने वाली शराब का बड़ा हिस्सा भी चोरी छुपे गुजरात जाता है। गुजरात से सटे मालवा इलाके की डिस्टलरी से शराब अवैध रूप से गुजरात भेजी जाती है। मप्र में कई बार इसकी धरपकड़ भी होती है लेकिन सरकार इससे होने वाली आय के चलते आंखें मूंद लेती है। गुजरात में मप्र से शराब की सप्लाई का सबसे बड़ा सबूत गुजरात की सरहद से सटे दो जिलों झाबुआ और आलीराजपुर में पिछले साल नीलाम हुए ठेके माने जा सकते हैं। आमतौर पर हर साल विदेशी शराब के ठेके पिछली बार से 15 से 20 फीसदी महंगे नीलाम होते हैं। लेकिन आलीराजपुर में ठेके 175 फीसदी और झाबुआ में डेढ़ सौ फीसदी महंगे नीलाम हुए। आबकारी विभाग के लोग बताते हैं कि इस धंधे से कई नेताओं का परोक्ष जुड़ाव है। शराब के ठेके नेताओं के करीबियों को ही मिलते हैं और इनकी कमाई का एक हिस्सा भी उन्हें जाता है। हालांकि सीधे तौर पर किसी नेता का नाम शराब के ठेके में शामिल नहीं होता। मप्र के आबकारी आयुक्त राकेश श्रीवास्तव के अनुसार राज्य में उत्पादित होने वाली शराब का दूसरे राज्यों में निर्यात लगातार बढ़ रहा है जबकि दूसरे राज्यों से आयात घटा है। प्रदेश में 1060 अंग्रेजी शराब और 2624 देशी शराब दुकानें हैं। वैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में कोई नई दुकान खोलने पर पाबंदी लगा रखी है। आबकारी विभाग के अतिरिक्त आयुक्त देवरंजन जौहरी कहते हैं कि वैश्विक मंदी के चलते मप्र के खजाने को भरने वाले विभागों में आबकारी विभाग को छोड़कर शेष सभी महकमों की आय घटी है।
यह सिर्फ मध्य प्रदेश की बात नहीं है, राजस्थान, बिहार, बंगाल सब जगह एक ही जैसा हाल है। राजस्थान में हर साल सरकार को शराब से होने वाली कमाई बढ़ती जा रही है। सरकार की आबकारी नीति-2015-16 में शराब से सरकार को 6,130 करोड़ रुपये की आमदनी होने का अनुमान है। वहीं साल 2016-17 में सरकार ने शराब से सात हजार करोड़ से भी ज्यादा आमदनी का लक्ष्य रखा है। कमाई का आलम यह है कि शराब की दुकानों के आवंटन के लिए आने वाले आवेदनों की फीस से ही पिछले साल छह सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई हो गई थी। इस बार आबकारी विभाग को आवेदन शुल्क से ही एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा मिलने की उम्मीद है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने साल 2016-17 के लिए घोषित अपनी नई आबकारी नीति में एक्साइज ड्यूटी को दस प्रतिशत बढ़ा दिया है और अब राजस्थान में शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी 127 प्रतिशत हो गई है।
पश्चिम बंगाल में भी शराब का कारोबार सालाना 30 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये के विदेशी शराब कारोबार और डेढ़ हजार करोड़ रुपये के देशी शराब के कारोबार से होने वाली कमाई को लेकर बंगाल सरकार राजस्व बढ़ाने के तमाम उपाय करने में लगातार जुटी हुई है। सालो-साल लाइसेंस की संख्या के साथ शराब पर लगने वाले बिक्री कर में बढ़ोतरी की जा रही है। एमआरपी पर बिकने वाली शराब पर बिक्री कर को 27 फीसदी कर दिया गया है। बगैर एमआरपी वाली शराब पर बिक्री कर 37 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया गया है। बंगाल में शराब की बिक्री के मद में राजस्व आय 1477.64 करोड़ रुपये है जो कि देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहद कम है। वेस्ट बंगाल फॉरेन लीकर मैन्यूफैक्चचरर्स होलसेलर्स एंड बॉन्डर्स एसोसिएशन के एक प्रवक्ता के अनुसार, 'बंगाल में 35 साल से कम उम्र की आबादी 62 फीसदी है। इस उम्र वर्ग में शराब की मांग ज्यादा है जो 35 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रही है।’ वाममोर्चा सरकार के 35 साल की अवधि में ज्योति बसु ने 27 वर्षों तक शराब की दुकानों के लिए लाइसेंस नीति को काफी कठोर बनाए रखा। दुकानें कम थीं। आबादी वाले इलाके से 500 फुट दूर शराब की दुकान के लिए लाइसेंस देने का प्रावधान था। लेकिन बसु के वारिसों ने रास्ता बदलना शुरू कर दिया।
शराब से होने वाली कमाई की मजबूरी है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्होंने चुनाव से पहले वादा किया था कि बिहार में पूर्ण शराब बंदी लागू की जाएगी, अब अपने वादे से पीछे हट गए हैं। अब उन्होंने कहा है कि सिर्फ देसी मसालेदार शराब पर प्रतिबंध लगेगा और विदेशी शराब पहले की तरह बिकती रहेगी और वह भी शहरी इलाकों में। बिहार सरकार की नई शराब नीति एक अप्रैल से लागू होनी है। दिसंबर में इस नीति का एलान किया गया और तबसे इसमें कई नई घोषणाएं जोड़ी जा चुकी हैं। दरअसल, राजस्व आय, शराब लॉबी के दबाव और बिक्री बंद होने से सरहदी जिलों में तस्करी बढऩे के चलते कानून-व्यवस्था की चुनौतियों की आशंका से अब राज्य सरकार वैकल्पिक नीति की राह पर है और इसके तहत नई-नई घोषणाएं जारी हैं। सरकार ने दानापुर में कोबरा ब्रांड की बीयर बनाने वाली कंपनी को अगले वित्त वर्ष में अपना उत्पादन बढ़ाने की मंजूरी दे दी है। वह बीयर की पांच लाख क्रेट से बढ़ाकर अपना उत्पादन सात लाख क्रेट करने जा रही है। राजस्व वसूली का आंकड़ा 20 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। राज्य के आबकारी मंत्री जलील मस्तान कहते हैं कि वैकल्पिक शराब नीति के तहत राज्य में देसी और मसालेदार शराब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लग जाएगा, लेकिन शहरी क्षेत्रों में विदेशी शराब और बीयर उपलब्ध रहेगी। इस श्रेणी में उन ग्रामीण क्षेत्रों को भी शुमार किया गया है, जो पर्यटन के नक्शे पर आते हैं। वर्ष 2005 से 2015 के बीच बिहार में शराब की दुकानों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई। नीतीश कुमार ने 2006 में बिहार स्टेट ब्रिवरेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएसबीसीएल) की स्थापना की थी। नीतीश के मुख्यमंत्री बनने से एक साल पहले यानी 2004-05 में शराब पर उत्पाद शुल्क से राज्य को 272 करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी। 2013-14 में यह आय बढ़कर 3,300 करोड़ रुपये हो गई और राज्य के कर राजस्व में उसका योगदान बढ़कर 15.60 फीसदी हो गया।
साथ में दीपक रस्तोगी, भोपाल से राजेश सिरोठिया एवं जयपुर से आउटलुक प्रतिनिधि