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23 January 2016

स्कूलों में सबके लिए है ऑयरन की गोलियां

गूगल

खंड के कुल 209 स्कूलों में सरकार की तरफ से ऑयरन और फोलिक एसिड की गोलियां मुफ्त बांटी जाती हैं। एक बात और यहां काबिले तारीफ लगी कि ये गोलियां अकेले किशोरियों को ही नहीं बल्कि किशोरों और बच्चों को भी दी जा रही है ताकि ऑयरन की कमी का चक्र जड़ से ही खत्म किया जा सके। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, दनकौर की मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर लक्ष्मी सिंह का कहना है, ”हम पहली कक्षा के बच्चे से लेकर बारहवीं कक्षा तक सभी लड़कों और लड़कियों को ऑयरन और फोलिक एसिड देते हैं। नीले रंग की ये 145 मिग्रा. की गोली पहली से पांचवीं कक्षा तक दी जाती है जो, छठी से बारहवीं कक्षा में बढ़कर 345 मिग्रा. की हो जाती हैं।“ स्वास्थ्य केन्द्र की ये योजना बेहद काबिले तारीफ है क्योंकि अनीमिया की बात आते ही महिलाओं को एकदम उससे जोड़ दिया जाता है। लेकिन, ये जान लेना भी जरूरी है कि ऑयरन की जितनी जरूरत लड़की को होती है उससे कुछ कम लड़कों को भी होती है।

स्कूल-स्कूल जाकर बच्चों का कंपलीट हेल्थ चेक-अप करने वाली ऐसी तमाम मेडिकल अधिकारी बच्चों में अलग-अलग बीमारियों की जांच करती हैं, उन्हें दवाइयां देती है और बीमारी गंभीर होने पर उन्हें आगे रेफर भी करती हैं। ये लोग स्कूल में बच्चों को ऑयरन की गोलियां खाने का तरीका भी बताती हैं और परेशानी होने पर उसका निपटारा भी करती हैं। डॉक्टर लक्ष्मी ने बताया कि ये दवाएं हफ्ते में एक बार ही खानी होती है और अगर किसी वजह से छूट जाती है, तो अगले दिन या जब भी बच्चा स्कूल आए तो कार्यक्रम इंचार्ज से गोली जरूर मांगे। ये अधिकारी बच्चों को यहां तक बताते हैं कि स्कूल में गोली खाने के बाद घर जाकर एक गिलास नींबू पानी जरूर पिएं ताकि ऑयरन शरीर में अच्छी तरह समा जाए। छह महीने के इस कोर्स में अगर बच्चे ऐसा नहीं करते तो जाहिर तौर पर वे ऑयरन खा तो रहे हैं लेकिन उसका कुछ अंश भी शरीर खुद में रोक नहीं पाता। हालांकि, जरूरी नहीं है कि बच्चे नींबू पानी ही पिएं वे कुछ भी ऐसी चीज गोली खाने के बाद खा लें जिसमें विटामिन सी खूब होता है जैसे आंवला, संतरा, आम या पपीता वगैरह।

खंड में ये कार्यक्रम सिर्फ स्कूलों के लिए ही हैं। इन गोलियों के सेवन के बाद हर स्कूल का मानना है कि उसने यहां खासकर लड़कियों का कमजोरी की शिकायत के चलते स्कूल से आए दिन छुट्टी लेना काफी हद तक कम हुआ है और स्कूलों का रिजल्ट भी काफी बेहतर हुआ है। स्कूल में बच्चों की हाजिरी और उनका सालाना रिपोर्ट कार्ड ही इस बात की पुष्टि करता है कि इन दवाओं का लड़के और लड़कियां बराबर सेवन कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो लगातार ये सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता। ड्राप आउट मामलों तक भी ये दवाएं पहुंचे उसके लिए आशा दीदीयां या एएनएम हैं जिनका काम अलग-अलग केन्द्रों से दवाएं लेकर घर-घर जाकर इन किशोरियों को उपलब्ध कराना है। लेकिन इन दीदीयों की शिकायत है कि मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में ज्यादातर लड़कियां अनीमिक पाई जाती है क्योंकि वे ऑयरन की गोलियां नहीं खाती। ये लड़कियां या तो स्कूल से ड्राप आउट हैं या फिर घर पर पढ़ाई करती हैं या मदरसों में जाती हैं। एक दूसरा तरीका और है घर बैठीं किशोरियों के लिए कि वे खुद प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर जाकर ये गोलियां लें।

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लोगों को ये तो मालूम है कि अनीमिया या शरीर में खून की कमी क्या है, लेकिन इसका नुकसान किस हद तक लड़की या उसकी आने वाली पीढ़ी को हो सकता है इससे अनजान हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर भी कमजोरी की शिकायत के साथ अगर ये लड़कियां आती है, तो इनको ऑयरन और फोलिक एसिड की गोलियां मुफ्त दी जाती है, लेकिन कुछ दिनों के बाद ये लड़कियां इस कोर्स को छोड़ देती हैं। लोगों का यही नजरिया अनीमिया को जड़ से खत्म करने में एक बड़ी रुकावट है।  

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TAGS: आॅयरन, गौतमबुद् नगर, दनकौर, स्वास्‍थ्य, लड़कियां
OUTLOOK 23 January, 2016
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