दूध से भी दूर नहीं होगी कुपोषण की समस्या
प्रदेश के गाजीपुर जिले में जब इस योजना के बारे में पड़ताल की गई तो पाया कि कई स्कूलों में इसकी व्यवस्था ही नहीं है क्योंकि उन्हें बस इतना पता है कि कुछ स्कूलों में ही यह योजना लागू है। भारतीय प्रतिष्ठान और सेव द चिल्ड्रेन के तहत किए जा रहे एक शोध के दौरान पाया गया कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के माध्यम से सभी स्कूलों को निर्देश दिया गया लेकिन कई स्कूलों के प्रधानाचार्य ने बताया कि उन्हें इस योजना के बारे में पता ही नहीं है केवल अखबारों के माध्यम से ही पता चल पाया है।
जिले के मनिहारी, बिरनो, मरदह ब्लाक में पड़ताल के दौरान पाया गया कि कई स्कूलों में मध्यान्ह भोजन ही नहीं मिल पा रहा है दूध की बात तो दूर। माधोपुर गांव में बच्चों को दूध की जगह खीर दी गई। वहीं आराजी ओड़सन गांव में दूध तो दूर मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भी नहीं हो पाई थी। स्कूलों में खामियों का आलम यह है कि मध्यान्ह भोजन के नाम पर जो चीजें दी जानी हैं वह तो अभी तक दी नहीं जा रही उसमें दूध की पिलाना तो दूर की कौड़ी साबित हो रही है।
जिले में कुछ 2996 विद्यालयों में से 2702 में ही बच्चों को दूध पिलाया गया लेकिन दूध कैसा है इसका कोई मानक तय नहीं है। राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक प्रत्येक बुधवार को दो-दो सौ मिलीलीटर दूध देने का प्रावधान है। लेकिन गर्मियों के समय में दूध की हो रही किल्लत से बच्चों को दूध में पानी मिलाकर दिया जा रहा है। लोगों का कहना है कि अगर सरकार इस व्यवस्था को सही तरीके से लागू करती तो इसका फायदा था लेकिन जिस तरह हफ्ते में एक दिन का प्रावधान है वह गलत है।
शोध के दौरान मुहम्मदाबाद ब्लॉक के स्कूलों में जब जानकारी हासिल की गई तो पता चला कि कई स्कूलों में तो चावल कढ़ी या फिर रोटी सब्जी ही दिया गया है। समाजसेवी रामनाथ यादव के मुताबिक सबसे बड़ी दिक्कत है योजनाओं को चलाने की। क्योंकि सरकार एक तरफ तो बच्चों को मध्यान्ह भोजन उपलब्ध कराकर यह कह रही है कि बच्चों में कुपोषण की समस्या दूर होगी लेकिन दूसरी तरफ जो बच्चे स्कूल नहीं जाते उनके कुपोषण की समस्या कैसे दूर होगी।
प्राध्यापक श्रीनारायन के मुताबिक मध्यान्ह भोजन के लिए मिलने वाली धनराशि भी कम है क्योंकि जितनी राशि मिलती है महंगाई के इस दौर में वह कम है। एक और अध्यापक बताते है कि मध्यान्ह भोजन के लिए एक साल पहले जो बजट निर्धारित किया गया था वही बजट आज तक है लेकिन महंगाई कहां से कहां पहुंच गई। जहां तक रहा दूध का सवाल तो इसके लिए कोई अलग से बजट नहीं दिया गया। प्रदेश सरकार ने जब यह फरमान जारी किया उसके बाद दूध वितरक कंपनियों को भी निर्देश दिया कि सही दूध की सप्लाई की जाए। लेकिन इस निर्देश के बावजूद गुणवत्तापूर्ण दूध को लेकर सवाल उठते रहे। क्योंकि कई जिलों में दूध खराब पाया गया तो कई जगहों पर दूध पीकर बच्चों की सेहत बिगड़ गई।
एक अध्यापक तो इस योजना को ही लेकर सवाल खड़ा करते हैं। नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि योजनाएं तो सरकार चला देती है लेकिन वह कैसे सही तरीके से लागू हो इस पर कोई ध्यान नहीं जाता। क्योंकि पहले किताब वितरण फिर ड्रेस वितरण, मध्यान्ह भोजन और अब दूध वितरण। इस काम में ही पूरा समय बीत जाएगा तो हम पढ़ाएंगे कब। कुछ बातें तो जायज हैं लेकिन कुपोषण से अगर मुक्ति कराने का सरकार का लक्ष्य है तो इसके लिए कोई ठोस रणनीति बनानी होगी।