Advertisement
29 December 2022

मेरे पिता: लड़की जात होने पर भी बढ़ाया आगे

 

“मां हम छह बच्चों को अनुशासित करने में लगी रहती थीं और पिताजी घर की दीवार और मीनार की तरह हमेशा घड़ी की सुई की तरह लगे रहते थे”

तीजन बाईप्रसिद्ध पंडवानी गायिका

Advertisement

पुत्री: हुनुकलाल

मेरी मां और पिताजी बहुत गरीब थे, लेकिन मां और पिताजी के आगे गरीबी भी ठिठक कर रह जाती थी और रोज गरीबी को अपना मुंह मोड़ने पर मजबूर होना पड़ता था।

मां हम छह बच्चों को अनुशासित करने में लगी रहती थीं और पिताजी घर की दीवार और मीनार की तरह हमेशा घड़ी की सुई की तरह लगे रहते थे। यानी भोर से लेकर देर शाम तक बस दोनों घड़ी की सुई की तरह घूमते ही रहते और जुटे रहते थे अपने काम में। 

पिताजी भोर में निकल जाते थे और शाम को ही घर वापस लौटते थे। वे जितनी कठोर मेहनत करते थे, दिल के उतने ही कोमल थे। वे मेरे लिए सही मायनों में योद्धा थे। वही थे जो बचपन में ही मेरी अंतरात्मा में बसी प्रतिभा को पहचान गए थे। एक दिन उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे मेरे नाना बृजलाल प्रधान के यहां छोड़ आए, जो बाद में मेरे गुरु बने। 

मेरे लिए मां, बाप, अपने पांच छोटे भाई और बहनों से अलग होना दिल हिला देने वाली घटना थी, पर नाना के लोकगायन शैली पंडवानी में महाभारत की कथा सुनते ही मेरे अंदर से वह दुख जाता रहा। उनके गायन के आगे जैसे सब फीका था। इस गायन शैली ने मेरे लिए सब कुछ भुला कर इसे सीखने की नींव रखी। 

जल्द ही मैंने छत्तीसगढ़ी के प्रसिद्ध लेखक सबल सिंह चौहान द्वारा छत्तीसगढ़ी में लिखी महाभारत को याद कर लिया। इसके बाद मैंने अपने रंगीन फुंदनों वाले तानपुरे के साथ छत्तीसगढ़ की इस लोकगायन शैली पंडवानी में महाभारत की कथा सुनानी शुरू कर दी। मैं खड़े होकर यह कथा सुनाती थी। क्योंकि उन दिनों लड़कियों को वेदमति शैली में फर्श पर बैठकर पंडवानी गाने की इजाजत नहीं थी। मैं जो पंडवानी सुना रही थी, गा रही थी, प्रसिद्धि पा रही थी, उसके पीछे यकीनी तौर पर मेरे पिताजी हुनुकलाल ही हैं, जिनको मैंने हमेशा घड़ी की सुई की तरह सुबह से लेकर देर शाम तक बस टिक-टिक चलते ही देखा था।

यही वजह है कि मुझे भी कभी खड़े होकर पंडवानी गायन में थकान महसूस नहीं हुई। मैं खड़े होकर सहजता के साथ अपने रंगीन फुंदनों वाले तानपुरे का भरपूर उपयोग कर पाती हूं। कभी यह तानपुरा दुस्शासन की बांह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुंचाने में कामयाब होता है।

पिता के सहयोग की बदौलत ही 13 साल की उम्र में मैंने पहली बार स्टेज पर जो प्रस्तुति दी उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मैंने पूरे जीवन अपने पिताजी का कभी गुस्सा नहीं देखा। लड़की जात होने पर भी नहीं।

(अनूप दत्ता से बातचीत पर आधारित)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Outlook Cover Story, Father, Tejan Bai, Outlook Hindi, Anoop Dutta
OUTLOOK 29 December, 2022
Advertisement