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01 February 2016

दस साल में मनरेगा में 3.13 लाख करोड़ रुपये खर्च, भ्रष्टाचार बाधक बनकर उभरा

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत ग्रामीण विकास मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, साल 2010-11 से 14 सितंबर 2015 के बीच करीब साढ़े पांच वर्ष के दौरान देश के विभिन्न प्रदेशों में मनरेगा योजना के मद में 2.10 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए। इस अवधि में केंद्र की ओर से 1.84 लाख करोड़ रूपये जारी किए गए। मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए सम्पूर्ण खर्च केंद्र और राज्य सरकार करती हैं। इसमें केंद्र और राज्य की देनदारियों का निर्धारण मनरेगा अधिनियम की धारा 22 के प्रावधानों के अनुसार किया जाता है।

आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, मनरेगा योजना के कार्यान्वयन को लेकर विभिन्न राज्यों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की शिकायतें प्राप्त हुई। 2010 से 2015 की अवधि में मनरेगा को लेकर बिहार में कुल 249 शिकायतें प्राप्त हुई हैं जिनमें 13 शिकायतें विशिष्ठ प्रकृति की और 236 शिकायतें सामान्य प्रकृति की हैं। उत्तरप्रदेश में इस अवधि में लंबित शिकायतों की संख्या 263 दर्ज की गई।

छत्तीसगढ़ में पिछले पांच वर्षों में मनरेगा में भ्रष्टाचार एवं अन्य अनियमितताओं की 70 शिकायतें प्राप्त हुई हैं जिनमें छह विशिष्ठ प्रकृति की और 64 सामान्य प्रकृति की। महाराष्ट में ऐसी 15 शिकायतें प्राप्त हुई हैं जिनमें एक विशिष्ठ प्रकृति की और 14 सामान्य तरह की हैं। पश्चिम बंगाल में इस अवधि में मनरेगा के बारे में 20 शिकायतें प्राप्त हुई। गुजरात में मनरेगा की लंबित शिकायतों की संख्या 14 दर्ज की गई जबकि मणिपुर में 49 और पंजाब में 25 शिकायतें लंबित हैं।

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ग्रामीण विकास मंत्रालय से साल 2010 से 2015 के बीच मनरेगा योजना के मद में आवंटन और खर्च के साथ विभिन्न राज्यों में इसके अनुपालन के संबंध में मिली शिकायतों का ब्यौरा मांगा था।

आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2010-11 में 39377 करोड़ रूपये, 2011..12 में 37072 करोड़ रूपये, 2012.13 में 39778 करोड़ रूपये, 2013..14 में 38601 करोड़ रूपये, 2014..15 में 36043 करोड़ रूपये और 2015..16 में 14 सितंबर 2015 तक 18780 करोड़ रूपये खर्च किये गए।

मनरेगा के तहत देश के कई क्षेत्रों में कार्य ठेकेदारों के जरिये कराने की खबरों के बारे में एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि मनरेगा का कार्य पंचायतों एवं अन्य कार्यक्रम कार्यान्वयन एजेंसियों के मार्फत किया जाना है, न कि ठेकेदारों के माध्यम से। मनरेगा के तहत मुख्य कार्य भूमि विकास और जल संरक्षण से संबंधित कार्य है।

आरटीआई के तहत यह पूछे जाने पर कि क्या मनरेगा के कारण उद्योगों और खेती के मजदूरों की उपलब्धता में कमी आई है, मंत्रालय ने कहा कि मनरेगा के कारण उद्योगों तथा कृषि क्षेत्र के लिए मजदूरों की उपलब्धता पर प्रभाव पड़ने के संबंध में कोई निर्णायक सबूत नहीं मिले हैं। मंत्रालय ने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम राज्यों द्वारा तैयार और क्रियान्वित किये जाते हैं और इसके लिए आवश्यकतानुसार स्टाफ और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने का दायित्व राज्यों का है। मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए तैनात कर्मचारियों के वेतन का भुगतान, कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिये जाने वाले छह प्रतिशत प्रशासनिक मद के तहत किया जा सकता है।

मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि मनरेगा के तहत आवंटित राशि का 71 प्रतिशत पारिश्रमिक का भुगतान करने में व्यय हुआ। श्रमिकों में से अनुसूचित जाति के श्रमिकों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जबकि अनुसूचित जनजाति के श्रमिकों की संख्या में 17 प्रतिशत बढोत्तरी हुई। महिला श्रमिकों की संख्या में भी वृद्धि दर्ज की गई। इस कार्यक्रम के तहत 65 प्रतिशत से ज्यादा काम कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में हुआ।

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TAGS: MANREGA, Corruption, RTI, Rural Development, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब
OUTLOOK 01 February, 2016
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