केरल को यूएई से मदद में अड़चन क्यों?
केरल में आई भीषण बाढ़ में विदेशी सहायता स्वीकार-अस्वीकार करने से मसला जोर पड़कता जा रहा है। ना सिर्फ देश के अंतर से बल्कि अन्य देशों से भी सहायता मुहैया कराने की पेशकश हो रही हैं। एक तरफ जहां केरल के मुख्यमंत्री और विपक्ष के कुछ दल स्पष्ट तौर पर यूएई द्वारा ऑफर की गई सहायता स्वीकार करने के लिए संघ सरकार से कह रहे हैं। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन के अनुसार साल 2016 में जारी हुई नेशनल डिसास्टर मैनेजमेंट पॉलिसी के अधीन अन्य देशों से सहायता स्वीकार की जा सकती है। तो वहीं सरकार ने विदेश मंत्रालय द्वारा प्रेस वक्तव्य जारी कर अपना रुख स्पष्ट किया है।
सरकार का पक्ष;
यूएई के अलावा थाईलैंड और मालद्वीप ने भी सहायता की पेशकश की जिसे भारत ने आभार व्यक्त करते हुए विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। विदेश मंत्रालय द्वारा जारी वकतव्य के अनुसार “वर्तमान नीति के अधीन राहत एवं बचाव कार्य के लिए आवश्यक संसाधन सरकार घरेलू प्रयासों से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही यदि कोई एनआरआइ, पीआइओ या अंतरराष्ट्रीय संस्था जैसे कोई फाउंडेशन प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष या मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में सहायता देना चाहता है तो उसका स्वागत है।“
क्या कहता है कानून?
सरकार के इस आधिकारिक वक्तव्य के साथ ही यदि हम आपदा प्रबंधन कानून-2005 को देखें तो उसके कोष संबंधित एक प्रावधान के अनुसार “किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा किसी आपदा प्रबंधन के लिए दिया गया कोई भी सहयोग एनडीआरएफ यानि नेशनल डिसास्टर रिलीफ फंड में जाएगा।“
आपदा प्रबंधन कानून और सरकार के पक्ष को साथ रखकर देखा जाए यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता कि अन्य देशों से सहायता स्वीकार की जा सकती है या नहीं, वहीं कानून में इस बात का भी स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि सहायता विदेशों ने नहीं ली जा सकती है। ऐसे में यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सहायता स्वीकार या अस्वीकार करना संघ सरकार के स्वविवेक पर निर्भर करता है।
इससे पहले क्या हुआ है?
इसके अलावा यदि हम इतिहास में आई प्राकृतिक आपदाओं में अन्य देशों द्वारा दी गई सहायता प्रयासो को देखें साल 2001 में गुजरात में आए विनाशकारी भूकंप से लेकर जितनी भी आपदाएं आई हैं, उनमें किसी में भी सहायता स्वीकार नहीं की गई है।