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20 December 2014

75 हजार करोड़ की कंपनी 15 सौ करोड़ में बेच दी

यदि किसी कंपनी के कब्जे में 75 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति हो और फिर भी सरकार उस कंपनी को महज 1500 करोड़ रुपये में बेच दे तो इसे क्या कहेंगे? भ्रष्टाचार की इस महागंगोत्री को जन्म दिया था आज से करीब 11 साल पहले देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने, जिसने हजारों करोड़ रुपये की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल)के 64 फीसदी शेयर महज 1500 करोड़ रुपये में विवादों में घिरी कंपनी स्टरलाइट ऑपरच्यूनिटीज एंड वेंचर्स लिमिटेड को बेच दिए थे। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इस विनिवेश में हुई गड़बडिय़ों की शुरुआती जांच में पाया है कि सरकारी खजाने को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया गया। सीबीआई ने शुरुआती जांच (पीई) दर्ज करने के बाद इस मामले में स्टरलाइट  के वर्तमान मालिक अनिल अग्रवाल, राजस्थान के छह जिलों के जिला अधिकारियों और हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के अधिकारियों को नोटिस जारी किए हैं। विनिवेश मंत्रालय के अधिकारियों से भी रिकार्ड तलब किए गए हैं। सीबीआई का आरोप है कि कंपनी के स्वामित्व वाली खदानों की जानकारी या तो छिपा ली गई या फिर उनका कम मूल्य लगाकर कंपनी के शेयर के भाव कम तय किए गए। एचजेडएल के कब्जे में तब करीब 75 हजार से अधिक मूल्य वाली खदानें थीं।
एक आकलन के अनुसार हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के स्वामित्व वाले खदानों की वर्तमान कीमत आज 3 लाख करोड़ रुपये है जबकि 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नकद रिजर्व है और इस सब पर स्टरलाइट की वर्तमान मालिक वेदांता रिसोर्सेज का अधिकार है। तब महज 1500 करोड़ रुपये में बिकी यह कंपनी आज सालाना दो हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाती है। वेदांता रिसोर्सेज के प्रबंध निदेशक अनिल अग्रवाल पर सीबीआई का शिकंजा कसना शुरू हो गया है। राजग सरकार ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के 26 फीसदी शेयर और प्रबंधन के अधिकार 2002 में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज को बेचे थे। उसी साल स्टरलाइट ने बाजार से और 20 फीसदी शेयर खरीदे थे। अगले वर्ष राजग सरकार ने अपने हिस्से के और शेयर कंपनी को बेच दिए जिससे एचजेडएल में स्टरलाइट की हिस्सेदारी 64 फीसदी से भी अधिक हो गई। वर्तमान में भारत सरकार के पास इस कंपनी के 26 फीसदी शेयर हैं और 21 जनवरी, 2014 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की एक कमेटी ने इस शेयर को भी वेदांता को बेचने की मंजूरी दे दी है यानी कि वेदांता अब पूरी तरह लाखों करोड़ रुपये की इस कंपनी की मालिक हो जाएगी। कमाल की बात है कि कंपनी के पास अभी 3 लाख करोड़ रुपये की खदानें बताई जा रही हैं। छब्बीस फीसदी शेयर के हिसाब से भी सरकार का हिस्सा 75 हजार करोड़ रुपये होता है मगर वेदांता ने इस 26 फीसदी शेयर के लिए करीब-करीब 27 हजार करोड़ रुपये का ही प्रस्ताव दिया है। यानी वर्तमान सरकार भी जनता के खजाने को चूना लगाने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
राजग सरकार के समय विनिवेश में किस तरह की गड़बड़ी हुई इस बारे में सीबीआई की जोधपुर ब्रांच ने तीन महीने तक जांच की और शुरुआती रिपोर्ट सीबीआई निदेशक को सौंप दी है। जोधपुर ब्रांच के प्रमुख एन.एस. यादव ने स्थानीय मीडिया को दी जानकारी में बताया है कि एजेंसी ने इस मामले में 6 नवंबर, 2013 को ही पीई दर्ज कर ली है और मामले से जुड़े अधिकारियों और अनिल अग्रवाल को नोटिस जारी किया है।
एजेंसी के सूत्रों के अनुसार कंपनी के विनिवेश से पहले एक स्वतंत्र कंपनी से हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की संपत्तियों का मूल्यांकन कराया गया था और सारी गड़बड़ी इसी स्तर पर की गई। कंपनी की संपत्तियों का या तो आकलन कम मूल्य पर किया गया अथवा कई संपत्तियां कागजों में दिखाई ही नहीं गईं। हद तो यह है कि कंपनी के स्वामित्व वाली सिंदेसर खुर्द माइंस की जानकारी ही छिपा ली गई। सीबीआई का आकलन है कि इस खदान का मूल्य तब 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक था और इसे मुफ्त में स्टरलाइट को दे दिया गया। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि महज 1500 करोड़ रुपये में कंपनी को खरीदने वाली वेदांता रिसोर्सेज अबतक 700 करोड़ रुपये का तो सिर्फ कबाड़ बेच चुकी है। सूत्रों ने बताया कि एजेंसी के नोटिस के जवाब में कंपनी ने यह माना है कि सौदे के समय एचजेडएल के कब्जे में 1170 लाख टन खनिज का भंडार था। लंदन मेटल एक्सचेंज के अनुसार इस रिजर्व की कीमत करीब 60 हजार करोड़ रुपये होती है।
राजग सरकार ने वेदांता को किस तरह से फायदा पहुंचाया इसका एक और उदाहरण देखें। सन 2002 में पहली बार 26 फीसदी शेयर 445 करोड़ रुपये में स्टरलाइट को बेचे गए थे। इस बिक्री से ठीक पहले सरकार ने एचजेडएल में कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना लागू कर दी और इस मद में 776 करोड़ रुपये अपनी जेब से खर्च कर दिए। इसके अलावा एचजेडएल की खदानों के संचालन के लिए आंध्र प्रदेश की एक बिजली कंपनी से 83 करोड़ रुपये में बिजली खरीद का समझौता कर लिया। यानी कि कुल 859 करोड़ रुपये कंपनी के खाते से खर्च कर डाले। यदि कोई अपने घर का भी कोई सामान बेचने की तैयारी करता है तो उस मद में आगे निवेश करना बंद कर देता है। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में ही एचजेडएल को बेचने का फैसला ले लिया था। इसके बावजूद इस कंपनी में इतना अधिक खर्च सिर्फ स्टरलाइट को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया, यह कोई भी समझ सकता है। आंकड़ों की बात करें तो 64 फीसदी शेयर के लिए सरकार को तो प्रभावी रूप से सिर्फ 641 करोड़ रुपये ही मिले।
राजग सरकार के समय सरकारी कंपनियों को बेचने के लिए अलग से एक मंत्रालय बनाया गया था और इसके मंत्री थे अरुण शौरी। एचजेडएल के सौदे के समय इस विभाग के सचिव प्रदीप बैजल हुआ करते थे। सीबीआई की जांच शुरू होने के बाद जहां शौरी का कहना था कि सीबीआई को इस विनिवेश की जांच का अधिकार नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगा रखी है वहीं बैजल का तर्क है कि विनिवेश की इस पूरी प्रक्रिया को संसद की मंजूरी हासिल थी। दूसरी ओर सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस विनिवेश में हुई गड़बडिय़ों की जांच पर रोक नहीं लगाई है। वर्तमान में यूपीए सरकार ने विनिवेश मंत्रालय को एक विभाग में बदल दिया है और इसे वित्त मंत्रालय के अधीन कर दिया है। फिलहाल इस विभाग के मंत्री पी. चिदंबरम हैं जो कि अनिल अग्रवाल के करीबी रहे हैं और 2004 में केंद्रीय मंत्री बनने से पहले तक वेदांता रिसोर्सेज में निदेशक हुआ करते थे। अनिल अग्रवाल की कंपनी स्टरलाइट शुरू से ही विवादों में रही है। हर्षद मेहता शेयर घोटाला मामले में शेयर बाजार की नियामक सेबी की जांच में इस कंपनी को भी इस मामले में संलिप्त पाया गया था और इसपर भारतीय बाजार से पूंजी उगाहने पर रोक लगा दी गई थी। बाद में अनिल अग्रवाल ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में वेदांता रिसोर्सेज के नाम से नई कंपनी रजिस्टर कराई और स्टरलाइट तथा अन्य सहयोगी कंपनियों को इसके अधीन कर दिया। वेदांता के मालिकाना हक को लेकर भी कई विवाद हैं और इसकी मूल कंपनियों के बहामास और मलेशिया जैसे टैक्स हैवेंस में स्थापित किए जाने की जानकारी सामने आई है।

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OUTLOOK 20 December, 2014
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