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12 September 2016

गठबंधन धर्म के विरुद्ध

जेल से छूटे शहाबुद्दीन को लेकर जद (यू) और राजद के रिश्तों में खटास के संकेत हैं।

मोहम्मद शहाबुद‍्दीन 11 साल जेल में रहने के बाद जमानत पर छूटकर आए हैं और नीतीश ने उन्हें अपराध के मामलों में किसी तरह की सहायता नहीं की। इसलिए उनकी निजी नाराजगी संभव है, लेकिन वह अब भी अपने को राष्ट्रीय जनता दल से जुड़ा और लालू प्रसाद यादव को ही नेता मानते हैं। इससे भी एक कदम आगे बढ़कर रघुवंश प्रसाद सिंह का शहाबुद्दीन के समर्थन में नीतीश के विरुद्ध बयान को माना जाएगा। रघुवंश प्रसाद सिंह वरिष्ठ नेता हैं और उनकी छवि भी अच्छी है। वह लालू के उत्तराधिकारी के रूप में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं। फिर लालू प्रसाद यादव मौन क्यों हैं? उनका मौन नीतीश सरकार में बैठे उनके ही बेटे उप मुख्यमंत्री और मंत्री की कुर्सियां कमजोर नहीं कर रहा ह़ै? नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रूप में संयमित टिप्पणी कर दी, लेकिन उनकी अप्रसन्नता सबको दिख रही है। भारतीय जनता पार्टी अथवा पासवान की पार्टी नीतीश-लालू जोड़ी की सरकार पर लगातार हमले कर रही है। लालू प्रसाद यादव लोकप्रिय नेता रहे हैं, लेकिन अदालत ने ही उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में सजा दी और चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गए। दबाव में उनके प्रशासनिक अनुभवहीन बेटे को उप मुख्यमंत्री तक का पद दे दिया गया। रघुवंश बाबू ने इस फैसले के विरुद्ध आवाज क्यों नहीं उठाई? वह तो अधिक अनुभवी नेता हैं। यही नहीं गठबंधन के सहयोगी कांग्रेसी मंत्री भी अधिक अनुभवी हैं। ऐसी स्थिति में नीतीश सरकार में शामिल रहकर मुख्यमंत्री के विरुद्ध अनर्गल प्रचार राजनीतिक नैतिकता के विरुद्ध है। सवाल गठबंधन का नहीं, बिहार की गरीब जनता का है, जिसने बड़ी उम्मीदों से उन्हें सत्ता दिलाई है। बिहार में विकास की धारा तेज करना, शिक्षा, स्वास्‍थ्य, आवास की न्यूनतम सुविधाएं उपलब्‍ध कराने की चुनौतियां हैं। नीतीश-लालू को एक साथ बैठकर घर में आग लगाने वालों को काबू में करना चाहिए।

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OUTLOOK 12 September, 2016
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