मुकदमा चलाने को लेकर किशोरों की आयुसीमा पर विवाद बढ़ा
बच्चों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वालों और अन्य का मानना है कि यह प्रस्ताव अवांछनीय है और इस विचार पर गहन विमर्श नहीं किया गया। यह तर्क देने वाले यह भी चेताते हैं कि यह तब ही सफल होगा जब किशोर को समुचित शिक्षा, भोजन और आश्रय आदि मुहैया कराते हुए उनके पुनर्वास सहित अन्य कदम उठाए जाएं।
हरियाणा में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के कुलपति सी.राज कुमार और बच्चों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले कार्यकर्ता एवं वकील अनंत कुमार अस्थाना ने इस विचार का विरोध करते हुए कहा कि अपराधों को अंजाम देने वाले किशोरों के लिए कड़े प्रावधान कई देशों में नाकाम रहे और वास्तविक समस्या का समाधान नहीं हुआ।
अस्थाना ने कहा ‘ किशोरों के लिए, कड़े कानून कई देशों में नाकाम रहे हैं और उसमे संशोधन किया जा रहा है।‘ बच्चों के अधिकारों के लिए कार्य कर रहे राजकुमार ने अस्थाना से सहमति जताई। उन्होंने कहा समाज में असली समस्या को न सुलझाकर और आयुसीमा कम करके हम आरोपों का रूख बच्चों की ओर कर रहे हैं।
मशहूर अधिवक्ता के टीएस तुलसी और एक अन्य वरिष्ठ वकील एच एस फूल्का ने इससे बिल्कुल अलग राय जाहिर की। दोनों अधिवक्ताओं का कहना है कि कानून में बदलाव के साथ ही, जघन्य अपराध करने वाले किशोरों को यह पता चलेगा कि अब वे आसानी से नहीं छूट सकते।