...और जब गला भर आया देश के प्रधान न्यायाधीश का
रूंधे गले से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश में जजों को संख्या को बढ़ाने का अनुरोध किया। प्रधानमंत्री ने इसपर उन्हें आश्वस्त किया कि सरकार न्यायपालिका के साथ मिलकर इस समस्या को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। दरअसल प्रधान न्यायाधीश इस बात से व्यथित थे कि सरकार देश में मुकदमों की बाढ़ को संभालने के लिए जजों की मौजूदा संख्या 21 हजार को बढ़ाकर 40 हजार करने की दिशा में कुछ खास नहीं कर रही है।
उन्होंने रूंधे गले से कहा, यह किसी प्रतिवादी या जेलों में बंद लोगों के लिए नही बल्कि देश के विकास के लिए, इसकी तरक्की के लिए मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि इस स्थिति को समझें और महसूस करें कि केवल आलोचना करना काफी नहीं है। आप पूरा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते।
इस संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि 1987 के बाद से, जब विधि आयोग ने जजों की संख्या को प्रति दस लाख लोगों पर दस न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी, तब से कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, इसके बाद सरकार की अकर्मण्यता आती है क्योंकि संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई। न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिशों का अनुसरण करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2002 में न्यायपालिका की संख्या में वृद्धि का समर्थन किया था। प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली विधि विभाग संबंधी संसद की एक स्थायी समिति ने जजों की संख्या और आबादी के अनुपात को दस से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी।
इस समय लोगों और जजों के अनुपात की बात करें तो यह प्रति दस लाख पर 15 है जो कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा से काफी पीछे है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 1987 में 40 हजार जजों की जरूरत थी। 1987 से लेकर आज तक आबादी में 25 करोड़ लोग जुड़ गए हैं। हम दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो गए हैं, हम देश में विदेशी निवेश आमंत्रित कर रहे हैं, हम चाहते हैं कि लोग भारत आएं और निर्माण करें, हम चाहते हैं कि लोग भारत में आकर निवेश करें।
उन्होंने मोदी के मेक इन इंडिया और कारोबार करने में सरलता अभियानों का जिक्र करते हुए कहा, जिन्हें हम आमंत्रित कर रहे हैं वे भी इस प्रकार के निवेशों से पैदा होने वाले मामलों और विवादों से निपटने में देश की न्यायिक व्यवस्था की क्षमता के बारे में चिंतित हैं। न्यायिक व्यवस्था की दक्षता महत्वपूर्ण रूप से विकास से जुड़ी है। विधि मंत्रालय द्वारा जारी कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी को कार्यक्रम में नहीं बोलना था।
मोदी ने कहा कि यदि संवैधानिक अवरोधक कोई समस्या पैदा नहीं करें तो शीर्ष मंत्री और उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ जज बंद कमरे में एक साथ बैठकर इस मुद्दे पर कोई समाधान निकाल सकते हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह तय करना सभी की जिम्मेदारी है कि आम आदमी का न्यायपालिका में भरोसा बना रहे और उनकी सरकार जिम्मेदारी को पूरा करेगी तथा आम आदमी की जिंदगी को सुगम बनाने में मदद करने से पीछे नहीं हटेगी।
मोदी ने न्यायाधीश ठाकुर द्वारा उठाए गए मुद्दों के संदर्भ में कहा, जब जागो तब सवेरा। उन्होंने कहा, मैं उनके दर्द को समझ सकता हूं क्योंकि 1987 के बाद से काफी समय बीत चुका है। जो भी मजबूरियां रही हों लेकिन देर आयद दुरूस्त आयद। हम भविष्य में बेहतर करेंगे। देखते हैं कि बीते हुए काल के बोझ को कम करते हुए कैसे आगे बढ़ा जा सकता है।
उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के बतौर ऐसे ही एक सम्मेलन में भाग लेने की घटना को याद करते हुए कहा कि उन्होंने उस समय अदालतों में छुट्टियों को कम करने, सुबह और शाम के समय अदालतें लगाने का सुझाव दिया था लेकिन सम्मेलन में भोजनावकाश के दौरान कुछ जजों ने उनके इस विचार पर सवाल उठा दिए थे। न्यायाधीश ठाकुर ने कहा कि भारत में एक मुंसिफ से लेकर उच्चतम न्यायालय के एक जज तक हर साल औसतन 2600 मामले निपटाए जाते हैं जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति वर्ष 81 का है।
उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी कहा कि वे निचले स्तर पर न्यायपालिका में जजों की संख्या बढ़ाएं। उच्च न्यायालयों में वाणिज्यिक शाखाएं खोलने और निचले स्तर पर वाणिज्यिक अदालतों की संख्या बढ़ाने वाले नए कानून की सराहना करने के साथ ही मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि नई अदालतों के लिए अलग ढांचे और नए जजों की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि उचित ढांचे और माहौल के बिना इस प्रकार की अदालतें मकसद पूरा करने में कामयाब नहीं होंगी क्योंकि ऐसे मामलों के लिए अलग तरह की व्यवस्था की जरूरत होगी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, नई बोतल में पुरानी शराब डालने से मकसद हल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा की गई भावुक अपील हो सकता है काम कर जाए और सरकार न्यायपालिका के समक्ष पेश आ रही समस्याओं का संज्ञान ले ले।