अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती, उच्च न्यायालय में आदेश सुरक्षित
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ ने कहा अपने लिखित ब्योरे दाखिल करें। हम उन पर विचार करेंगे और व्यवस्था देंगे। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान जम्मू कश्मीर राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि ऐसा ही मुद्दा उच्चतम न्यायालय में उठाया गया था लेकिन उसने इसमें हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था। अधिवक्ता ने दावा किया कि जनहित याचिका वास्तव में राजनीति से प्रेरित एक याचिका है।
इस पर प्रतिवाद करते हुए याचिकाकर्ता कुमारी विजयलक्ष्मी झा के वकील ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के समक्ष उनके द्वारा उठाया गया मुद्दा उस मुद्दे से अलग है जो उच्चतम न्यायालय में पेश किया गया था। अधिवक्ता ने कहा, ‘इनमें से (जम्मू कश्मीर के लिए वकील द्वारा संदर्भित) किसी भी मामले में ऐसे मुद्दे नहीं उठाए गए।’ पीठ ने जिरह के बाद दोनों पक्षों से उनके लिखित ब्योरे एक सप्ताह के अंदर दाखिल करने को कहा।
याचिकाकर्ता ने याचिका में तर्क दिया है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है जो कि वर्ष 1957 में राज्य की संविधान सभा के भंग होने के साथ ही समाप्त हो गया। याचिका में कहा गया है कि अदालत के समक्ष यह प्रश्न विचाराधीन है कि क्या जम्मू कश्मीर की संविधान सभा के 26 जनवरी 1957 में भंग होने के साथ ही अस्थायी प्रावधान स्वत: समाप्त हो गया।
इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बावजूद अनुच्छेद 370 के अस्थायी प्रावधान का जारी रहना जम्मू कश्मीर संविधान का बने रहना है जिसे कभी नागरिकता जैसे मुद्दों के संदर्भ में भारत के राष्ट्रपति या संसद या भारत सरकार की अनुमति नहीं मिली जबकि यह मुद्दा संसद के विशेष अधिकार क्षेत्र का है।
याचिका के अनुसार, ‘जो कुछ हो रहा है, वह हमारे संविधान के मूल ढांचे, देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता के तथा संसद की संप्रभुता के खिलाफ है।’ इस आग्रह का विरोध करते हुए पूर्व में केंद्र ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मुद्दे पर विचार किया जा चुका है। इससे पहले जुलाई 2014 में उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए विशेष दर्जे को चुनौती देने संबंधी अपील खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाने के लिए कहा था।