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18 July 2016

राजन की जुबानी महंगाई का कड़वा सच

गूगल

राजन ने उन्हें समझाया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्‍था की कमजोरी, दो वर्षों में हुई सूखे की स्थिति से अवश्य आर्थिक स्थिति निराशाजनक हुई है। राजन की आर्थिक नीतियों को अंतरराष्‍ट्रीय जगत में सही ठहराया गया है। लेकिन सुब्रह्मण्यम स्वामी सहित देश में एक लॉबी सारी आर्थिक समस्याओं के लिए राजन को दोषी ठहरा रही है। देश में दाल, सब्जी, फल, दूध पेट्रोल, डीजल, दवाई जैसी आवश्यक वस्तुएं महंगी होने के लिए क्या रिजर्व बैंक और उसके गवर्नर को दोषी ठहराया जा सकता है? सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भारी गड़बड़ी की रोकथाम और दालों का समय पर आयात न करे, तो इसे किसकी जिम्मेदारी माना जाएगा। लंबे अर्से तक दुनिया भर में कच्चे तेल के मूल्यों में भारी गिरावट आई, लेकिन सरकारी कर व्यवस्‍था के कारण भारत में पेट्रोल-डीजल के मूल्य उस अनुपात में कम नहीं हुए। विजय माल्या तो बैंकों का हजारों करोड़ों रुपया लेकर देश से बाहर चला गया, लेकिन अब भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग और कंपनियां हैं, जिन पर हेराफेरी और कर्ज नहीं चुकाने के आरोप हैं। देश की राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्‍था ऐसी गड़बड़ियों पर रोक नहीं लगा सकी है और न ही उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई हुई है। किसानों और छोटे व्यापारियों को भी कहीं कोई राहत नहीं मिल पाई है। विदेशी पूंजी निवेश के लिए बड़े समझौते हुए हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में तो समय लगेगा। कुछ प्रदेशों में लघु उद्योग की इकाइयां बंद हो रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि केंद्र की कई योजनाओं पर अमल राज्य सरकारें करती हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी राज्यों के सहयोग से सफल रहती हैं। इसलिए केंद्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल, निगरानी एवं स्‍थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता से सामान्य लोगों को लाभ मिल सकता है। इस समय भाजपा उत्तर तथा पश्चिम भारत के अधिकांश राज्यों में सत्ता में है। फिर किसानों और उपभोक्ताओं को समुचित लाभ क्यों नहीं मिल रहा है। राजन के सिर पर महंगाई का मटका फोड़ने के बजाय सत्तारूढ़ नेताओं को अपनी व्यवस्‍था एवं दावों की असलियत का विश्लेषण करना चाहिए।

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TAGS: रिजर्व बैंक, गवर्नर, रघुराम राजन, महंगाई, दाल, तेल, स्वामी, सरकार, नेता
OUTLOOK 18 July, 2016
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