आरक्षण पर पुनर्विचार के संघ के बयान से भाजपा को नुकसान का अंदेशा
बिहार विधानसभा चुनावों में आरक्षण का जिन्न भारतीय जनता पार्टी पर भारी पड़ सकता है। बिहार की धरती से आ रही खबरें बता रही हैं कि वहां दलितों और पिछड़ी जातियों में खासी खदबदाहट शुरू हो गई है। यही वजह है कि बार-बार भाजपा नेताओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान कि आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, से खुद को अलग करने का ऐलान करना पड़ रहा है। केंद्र में भाजपा के नेता और मंत्री जितनी बार भी इस बात को कहें कि वे आरक्षण के पक्ष में हैं, लेकिन संघ प्रमुख का बयान बड़ी खाई पैदा कर रहा है।
इसके खिलाफ या यूं कहें कि डैमेज कंट्रोल के लिए दिल्ली में भाजपा सांसद उदित राज ने खुलकर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इससे गलत संकेत जाएगा। बिहार में भाजपा के सहयोगी रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन मांझी संघ के इस बयान से बेतरह नाराज बताए जाते हैं। उनके खेमों में बेचैनी है। उन्हें अपने दलित आधार में दरार पड़ने का अंदेशा है। जीतन मांझी के आधारक्षेत्र गया के केशुराम का कहना है, मैं दलित हूं और मेरे बेटे को आरक्षण की वजह से नौकरी मिली है। मोदी हमारा आरक्षण ले लेंगे। उनकी पार्टी ठाकुर-ब्राहमण और बनिया का पार्टी है। दलित नेता को ये लोग सब टोकन के तौर पर रखता है, न।
सवाल यह है कि क्या भाजपा और संघ की इस तरह की आरक्षण विरोधी छवि नीचे तक पहुंचेगी और यदि पहुंचेगी भी तो क्या दलितों के वोटों को प्रभावित करेगी। कुछ इलाकों में तो यह मुद्दा बन रहा है। जैसे सरन-छपरा और जमुई में दलित कार्य़कर्ताओं के बीच इसने बहस पैदा की है। छपरा जिले के रीवीलगंज के रनबीर कुमार ने आउटलुक को बताया, भाजपा और संघ एक ही हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी, अपनी पूरी टीम के साथ उन्हीं को न रिपोर्ट करते हैं। हम सब टीबी पर देखें है। ये लोग आरक्षण का खात्मा चाहते हैं। अगर बिहार जीत गए तो भाजपा यही करेगी। हम लोग तो इनके साथ बिल्कुल भी नहीं है। कोई भी जागरूक दलित इनको वोट नहीं देगा। जब रनबीर से पूछा कि भाजपा के साथ ही रामबिलास पासवान और जीतन मांझी जैसे दलित नेता हैं, तो दलित उन्हें क्यों नहीं वोट देगा, तब रनबीर ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा, रामविलास पासवान दलितों के नहीं खाली पासवान के नेता हैं। और वह पूरी तरह से परिवारवाद के दलदल में हैं। उनको कोई दूसर नेता दिखबे नहीं न करता है। ऐसे में जहां वह नहीं वहां पासवान भी किसको बोट करेगा, यह कोई पक्का नहीं न कह सकता है। रनबीर ने बताया कि बिहार में दलित आंदोलन के लोग भाजपा के साथ नहीं हैं, हालांकि उन्हें फोड़ने की बहुत कोशिश हुई।
जमुई के मुन्ना कुमार को लगता है कि लालू के साथ हाथ मिलाकर नीतीश ने अक्लमंदी की है। वह कहते हैं, लालू का जमीन मजबूत है। मोदी के आका (संघ प्रमुख) को सही जवाब दिया लालू, हिम्मत है तो आरक्षण हटा कर दिखाओ। लालू जी के बोलने के बाद भाजपा के पसीने छूट गए न। रोज ही सफाई देनी पड़ रही है। काहे भाई, तुम तो बिहार में जातिवाद ही न देख रहे थे, अब क्या हुआ, इतने यादव, इतने अतिपिछड़ा, सबका हिसाब अमित जी (शाह) को रखना पड़ रहा है। यह बड़का प्रोबलम है। ये सब सोचता कुछ है और बोलता कुछ है। देखिए क्या होता है।–
संभवतः इसी तरह का फीडबैक भाजपा को भी मिल रहा है बिहार से। तभी वह रोज आरक्षण के प्रति अपने प्रेम को जाहिर करने में जुटी है। केंद्र में भाजपा के कई मंत्रियों को भी लगता है कि संघ के बयान से नुकसान हो सकता है। एक नेता ने बताया कि लालू का नाम आने से पहले ही सवर्ण जातियां भाजपा के पाले में आ गई हैं, उनके लिए अलग से आरक्षण पर बहस को खोलने की जरूरत नहीं थी। बहरहाल, डैमेज कंट्रोल में जुटी भाजपा, कितना नुकसान भर पाएगी, इसका अंदाजा अभी लगाना संभव नहीं।