भाजपा का दलित प्रेम दिखावा, मोदी सरकार में बढ़े अत्याचार के मामले: पी एल पूनिया
बीते शुक्रवार को आयोग के अध्यक्ष पद से विदा हुए पूनिया ने समाचार एजेंसी भाषा को दिए साक्षात्कार में कहा, भाजपा सरकार के आने के बाद देश भर में दलितों पर अत्याचार के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। आंकड़े इस बात को साबित करते हैं। भाजपा और प्रधानमंत्री जी का दलित प्रेम सिर्फ दिखावा और भाषणबाजी है। दलितों से जुड़े असली मुद्दों पर भाजपा के लोग आंखें मूंद लेते हैं। उनका मकसद सिर्फ दलितों के वोट हासिल करना है, उनके विकास की उन्हें कोई चिंता नहीं है। पूनिया ने आयोग के अध्यक्ष के तौर पर तीन-तीन साल के दो कार्यकाल पूरे किए। अपनी विदाई के समय उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों का लेखा-जोखा पेश किया था। आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2013-14 में आयोग के समक्ष दलितों पर अत्याचार और भेदभाव से जुड़े 12,400 मामले आए जो 2015-16 में बढ़कर 17,025 हो गए। पूनिया का कहना है कि इस साल के कुछ महीनों के भीतर ही 8700 से अधिक मामले आयोग के समक्ष आए हैं। उन्होंने कहा कि अक्तूबर, 2013 में उनके आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद से लेकर सितंबर, 2016 तक आयोग ने दलितों से जुड़े 33,679 मामलों का निस्तारण किया।
पूनिया ने उना की घटना के बाद प्रधानमंत्री मोदी की ओर से दिए बयान का हवाला देते हुए कहा, प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि दलितों को मत मारो, मुझे मारो। इस बयान का क्या मतलब है। उनको यह कहना चाहिए था कि जो दलितों पर अत्याचार करेगा उसको बख्शा नहीं जाएगा। उन्हें कड़ा संदेश देना चाहिए था। दरअसल, उन्होंने सिर्फ भाषणबाजी की। उन्होंने कहा, पिछले कुछ वर्षों में देश के भीतर दलितों पर अत्याचार की कई गंभीर घटनाएं सामने आईं, लेकिन रोहित वेमुला का मामला और उना की घटना सबसे चुनौतीपूर्ण रहे। रोहित के मामले ने यह दिखाया कि किस तरह से पूरा सिस्टम दलितों के खिलाफ काम करता है। इतना जरूर है कि इन दोनों मामलों के बाद दलित समाज पहली बार अत्याचारों के खिलाफ इतना मजबूती के साथ खड़ा हुआ। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित न्यायिक आयोग द्वारा रोहित वेमुला के दलित नहीं होने की बात कहने को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए पूनिया ने कहा, आयोग का काम रोहित की जाति के बारे में पता करना नहीं था। लेकिन उसने उसकी जाति के बारे में टिप्पणी की जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। राजस्व प्रशासन ने बार-बार इसकी पुष्टि की थी कि रोहित वेमुला दलित था, फिर उसकी जाति को लेकर सवाल खड़े करना का क्या मतलब है। मुझे लगता है कि यह असली मामले से ध्यान भटकाने का प्रयास था। उन्होंने कहा, दलित अत्याचार विरोधी कानून का सही से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। दलितों पर अत्याचार को रोकने के लिए इस कानून का सही ढंग से क्रियान्वयन जरूरी है।