सिंधु जल पर पीएम मोदी बोले, खून और पानी साथ नहीं बह सकता
सूत्रों के अनुसार इस बैठक में चीन की भूमिका पर भी चर्चा हुई। ये समीक्षा बैठक 18 भारतीय सैनिकों की जान लेने वाले उरी आतंकी हमले का पाकिस्तान को जवाब देने के विकल्पों पर विचार के सिलसिले में बुलाई गई। भारत में यह मांग लगातार बढ़ रही है कि आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत सिंधु नदी के पानी के बंटवारे से जुड़े इस समक्षौते को तोड़ दे।
बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, विदेश सचिव एस जयशंकर, जल संसाधन सचिव एवं प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्य अधिकारी उपस्थित थे। समीक्षा बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। इस बैठक में सिंधु जल समझौते को लेकर सरकार का सख्त रुख दिखाई दिया।
सिंधु जल समझौता पर सितंबर 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे। इस समक्षौते के तहत छह नदियों, व्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और क्षेलम के पानी को दोनों देशों के बीच बांटा गया था।
पाकिस्तान इस बात का रोना रोता आया है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा और इसके लिए वह एक दो बार अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी जा चुका है। जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने पिछले सप्ताह कहा था कि 1960 में किये गये इस समक्षौते के बारे में सरकार का जो भी फैसला होगा उनका राज्य इसका पूरा समर्थन करेगा।
निर्मल सिंह ने कहा था, इस संधि के कारण जम्मू कश्मीर को बहुत नुकसान हुआ है। क्योंकि राज्य इन नदियों, विशेष रूप से जम्मू की चिनाब के पानी का कषि अथवा अन्य जरूरतों के लिए पूरा उपयोग नहीं कर पाता है। उन्होंने कहा था कि केन्द्र सरकार सिंधु जल संधि के बारे में जो भी फैसला करेगी, राज्य सरकार उसका पूरा समर्थन करेगी।