Advertisement
30 January 2020

चरमराती अर्थव्यवस्था बनाम लोगों की उम्मीदों का बजट 2020, वित्त मंत्री के पास क्या है रास्ता

File Photo

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने बीते साल चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 6.8 फीसदी से घटकर 5 फीसदी होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि यह इस बात का संकेत है कि हम एक लंबी मंदी के भंवर में फंस चुके हैं। इस संकट की चौथी तीमाही में और गहराने की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में एक फरवरी को पेश होने वाले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को कई चुनौतियों को देखते हुए फैसले करने होंगे। सबसे पहले आइए जानते हैं कि अर्थव्यवस्था के प्रमुख सूचकांकों का क्या है हाल

1. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ रेट घटकर पिछले 6 साल के निचले स्तर पर आ गई है।

   • वित्त वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 5 फीसदी से घटकर 4.5 प्रतिशत हो गई है।

Advertisement

   •  वही, अन्य संस्थानों के मुताबिक भी इस साल भारत की विकास दर 5 फीसदी रहने का अनुमान है जो पिछले 11 साल में अर्थव्यवस्था के लिए एक और नकारात्मक संकेत हैं।

   •  बीते 9 जनवरी को वर्ल्ड बैंक ने जीडीपी ग्रोथ रेट 6.5 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है जबकि सबसे बड़ी सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की रिपोर्ट में अनुमानित ग्रोथ रेट 5 फीसदी से घटाकर 4.6 फीसदी कर दिया गया है।

 2. बेरोजगारी दर 45 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर है।

   • नेशनलस सैंपल सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर 2017-18 के दौरान 6.1 % के साथ 45 साल में सर्वाधिक रही। हालांकि, इस रिपोर्ट को मानने से सरकार ने इनकार कर दिया था जबकि फिर से सत्ता में वापसी के बाद सरकार ने माना था कि हालात यही है।

   • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) द्वारा बीते 2 जनवरी को जारी रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2019 में बेरोजगारी दर 7.7 फीसदी (नवंबर में 7.48 फीसदी) रही। जबकि अक्टूबर 2019 में बेरोजगारी दर 8.5% के साथ तीन साल में सबसे ज्यादा रही।

   • इसी संस्थान की ओर से जारी एक और आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2019 से दिसंबर 2019 के बीच देश की बेरोजगारी दर बढ़कर 7.5 फीसदी पहुंच गई। इतना ही नहीं,उच्च शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी दर बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गई है।

3. कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स (सीपीआई) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर में खुदरा महंगाई दर 7.35 फीसदी (नवंबर में खुदरा महंगाई दर 5.54%) के साथ पिछले साढ़े पांच साल में सबसे ज्यादा हो गई है। इससे पहले जुलाई 2014 में यह दर 7.39 फीसदी था।

4. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की घटी रफ्तार

   • 2019 में जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक उत्पादन की विकास दर घटकर सिर्फ 2 %  रह गई। जबकि 2018 में मैन्यूफैक्चरिंग विकास दर 7% था।

   • मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट की वजह से पावर डिमांड की दर भी 0.2 फीसदी के साथ पिछले चार क्वाटर में सबसे कम रहा। जबकि साल 2018 में यह दर 6 फीसदी था।

5. भरोसा गिरा है।

  • हाल ही में थॉमसन रॉयटर्स-इप्सॉस के एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक जनवरी 2020 में कंज्यूमर कॉनफिडेंस में 7.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। यानि, भारतीय अर्थव्यवस्था का मंदी के कुचक्र में फंस जाने से खरीददारों और निवेशकों दोनों का मन डगमगा गया है।

   • वही, दिसंबर 2019 में जारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की रिपोर्ट के मुताबिक सीसीआई में काफी गिरावट आई। नवंबर महीने में यह गिरकर 85.7 अंक (सितंबर महीने में 89.4 ) पर पहुंच गया जो साल 2014 के बाद सबसे न्यूनतम है।

6. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी किए गये आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2019 में भारत के निर्यात में लगातार पांचवे महीने गिरावट दर्ज की गई। भारत का निर्यात दर दिसंबर 2019 में 1.8 फीसदी की गिरावट के साथ 27.36 अरब डॉलर का रह गया। यानि, दिसंबर 2018 के मुकाबले दिसंबर 2019 में भारत के निर्यात में 50 करोड़ डॉलर की कमी हुई।

क्या है रास्ता

लेकिन, दिल्ली स्थित इस्टिच्यूट ऑफ सोशल साइंस, वसंत कुंज के प्रो. और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के रहे पूर्व प्रो. डॉ. अरूण कुमार कहते है, “वित्त मंत्री के सामने यह बजट चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। क्योंकि, ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतनी भारी मंदी के बीच बजट पेश किया जा रहा हो। 2008 में भी ऐसा हुआ था लेकिन उस वक्त अर्थव्यवस्था मजबूत थी। और मंदी एक्सटर्नल इंपैक्ट की वजह से आई थी, जीडीपी ग्रोथ रेट 8% थी। जबकि फिस्कल डेफिसिट 3% था। इस वक्त यदि हम स्टेट और सेंट्रल दोनों को मिलाकर देखे तो फिस्कल डेफिसिट करीब 10% है। सरकार के पास पैसे नहीं है कि वो खर्च करें। इसलिए उसने अपने खर्चें में कटौती कर दी है। मंदी से निकलने के लिए सरकार को असंगठित क्षेत्र में पैसा देना होंगा। इसलिए,जब तक कुछ कड़े कदम इस बजट में नहीं उठाए जा सकते तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता।” वहीं, जेएनयू के प्रो. हिमांशु कुमार कहते है, “अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की दृष्टि कोण से यह बजट बहुत खास है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के भयावह दौर से गुजर रही है। इसलिए इस बात को देखना होगा कि किस तरह के कदम सरकार उठाती है। सरकार अपने मद के पैसे को कहां-कहां खर्च करती है और कितना खर्च करती है।”

इनकम टैक्स पर राहत की उम्मीद

डगमगाती अर्थव्यस्था के बीच लोगों के हाथ में पैसा आए, तांकि वो खर्च करें। इस बात को लेकर कयास लगाए जा रहें है कि बजट में व्यक्तिगत आयकर में कटौती की जा सकती है। क्योंकि, सरकार ने 2017 में सीबीडीटी के सदस्य अखिलेश रंजन की अगुवाई में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। जिसने 2019 में सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी। टास्क फोर्स के अनुसार बजट में वेतन भोगियों के लिए आयकर की 3 की जगह 4 टैक्स स्लैब होनी चाहिए। 2.5 लाख से ज्यादा और 10 लाख तक सालाना आय वालों के लिए टैक्स रेट 10% होनी चाहिए। वही, 10 से 20 लाख की आय तक के लिए 20% और 20 लाख से 2 करोड़ तक के लिए 30% टैक्स स्लैब होनी चाहिए। जबकि 2 करोड़ से अधिक के लिए 35% होनी चाहिए।

व्यक्तिगत आयकर में कटौती के सवाल पर प्रो. अरूण कुमार कहते है, “अगर सरकार बजट में ऐसा कुछ करती भी है तो यह कारगर नहीं है। क्योंकि पूरे देश में 1.5% या 2% लोग ही टैक्स भुगतान करते हैं। हालांकि 8 करोड़ लोग टैक्स के दायरे में आते हैं लेकिन उनमें से अधिकतर या तो निल रिटर्न टैक्स फाइल करते है या बहुत कम टैक्स देते है। यदि इसमें सरकार छूट देती है फिर भी पर्चेजिंग पावर नहीं बढ़ेगा। अनिशिचिता की स्थिति के बीच लोगों को टैक्स में जो भी छूट मिलेगा उसे वो सेविंग ही करना चाहेंगे।” वही, हिमांशु कुमार कहते है, “सरकार को यदि अर्थव्यवस्था में सुधार लाना है तो बजट में सबसे पहले रूरल सेक्टर पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि लोगों के पास पैसा नहीं है कि वो खर्च करे। जिनके पास है वो खरीदना नहीं चाहते, जैसा कि कंज्यूमर इंडेक्स में बात सामने आई थी। इसलिए सरकार को मनरेगा सरीखे इस तरह की हर योजनाओं में पैसे खर्च करने होंगे।”

गाहे-बगाहे फिर वही सवाल खड़ा होता है कि क्या वित्त मंत्री का आने वाला ‘बजट 2020’ भारत को मंदी से निकाल पाएगा? इस सवाल पर हिमांशु कहते है, "देखिए, सरकार कुछ ठोस कदम यदि इस बजट में उठती है फिर भी कम से कम एक साल हमें मंदी से जूझना होगा।" वही, अर्थशास्त्री प्रो. अरूण कुमार कहते है, “सरकार ने कॉपोरेट टैक्स में छूट दी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के मद्देनजर असगठित क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया। अब लोगों को विश्वास नहीं है कि उनकी आमदनी बढ़ेगी। इसलिए वो सामान खरीदने से कतरा रहें हैं। जो गरीब तपकें है उनके हाथ में पैसा देना होगा तभी अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलेगी।"

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Budget 2020, versus crumbling, economy, economist says, expectations
OUTLOOK 30 January, 2020
Advertisement