Advertisement
09 December 2015

मां-बहन की गालियों से मुक्त भारत की मुहिम

मनीषा भल्ला

रोजाना की इस मशक्कत की वजह नीलोफर बताती हैं कि जब भी उनके कानों में मां, बहन और बेटी को संबोधित करती गालियां पड़ती हैं तो लगता है कि किसी ने उनके कानों में गरम-गरम सीसा डाल दिया हो। जहर भर दिया हो। उनका कहना है ‘अजीब सी उलझन होती है। जलील महसूस करती हूं। गुस्सा आता है।’

 

सहर नीलोफर का कहना है कि मैं कम से कम इतना कर रही हूं कि बाजारों में, बस स्टैंड पर या घर से बाहर कहीं भी दो आदमी अगर आम बातचीत में गाली गलौज करते हैं तो मैं बीच में कूद जाती हूं कि आखिर मां को गाली क्यों दे रहे हो। वह कहती हैं कि हर दिन फरमान आते हैं कि लड़कियां ऐसे कपड़े न पहनें, वैसे कपड़े न पहनें यानी लड़कियां शरीर तो ढक कर रखें, आदमी चाहे अपनी जुबान में उनके गुप्तांग को लेकर गाली-गलौज करते रहें, उन्हें नंगा करें। नीलोफर के अनुसार गुस्सा जाहिर करने के दूसरे कई तरीके हैं।

Advertisement

 

इस मुहिम के पीछे नीलोफर की अपनी निजी जिंदगी की कहानी भी जुड़ी है। वह 20 सालों से अकेली रह रही हैं। अपनी शादीशुदा जिंदगी में उन्होंने अपने ससुराल में इतना गाली-गलौज सुना और सहा कि वह कहती हैं ‘कोई पल ऐसा नहीं था जब गालियों की बारिश नहीं होती थी, हर बात शुरू भी गाली से होती थी और खत्म भी गाली से।’ जब आजिज आकर वह अकेले रहने पर मजबूर हो गईं तो फिर घर में तो कोई गाली देने वाला नहीं था लेकिन बाजारों, बसों, रेलगाड़ियों यानी घर से बाहर की दुनिया में मां-बहन और बेटी की गाली से खाली कोई जगह नहीं थी। वह बताती हैं कि गालियां हमारी भाषा में इस कदर शामिल हो चुकी हैं कि हमारी भाषा गंदी हो चुकी है। खासकर उत्तर भारत में तो गाली बाकायदा भाषा बन चुकी है, इसलिए भाषा से गालियां बाहर करनी होंगी।

 

वह बताती हैं कि हाल ही में चावड़ी बाजार में दो आदमी बात-बात पर किसी तीसरे आदमी को मां की गाली दे रहे थे। तो नीलोफर ने उनसे कहा कि वह ऐसा क्यों बोल रहे हैं। उनका कहना था कि फलां आदमी ने उनका काम नहीं किया। इसपर नीलोफर ने कहा कि इसपर उसकी मां की क्या गलती है। और न तो उनकी बात वह आदमी सुन रहा है और न ही उसकी मां। नीलोफर ने उससे घंटों बात की तो उन आदमियों को समझ में आ गया। नीलोफर अकेले इसी प्रकार गालीमुक्त समाज जैसा मुश्किल काम कर रही है। अपनी इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए अब वह चाहती हैं कि वह स्कूलों में जाकर बच्चों को इस मसले पर जागरूक करें। वह यह भी चाहती हैं कि कुछ और लोग भी उनकी इस मुहिम में उनके साथ जुड़ें।  

 

 

  

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: गाली-गलौज, चावड़ी बाजार, सहर नीलोफर, उत्तर भारत
OUTLOOK 09 December, 2015
Advertisement