चर्चाः शहनाई के शहंशाह के आंगन में गालियां | आलोक मेहता
पराकाष्ठा यह है कि महाराष्ट्र सहित केंद्र सरकार की साझेदार शिवसेना ने उसका समर्थन करते हुए गुलाम अली को आमंत्रित करने वालों तक को ‘मुजरिम’ करार दिया। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वाराणसी के प्रतिष्ठित ऐतिहासिक संकटमोचन मंदिर के महंत विश्वंभरनाथ मिश्र ने संकटमोचन संगीत समारोह का निमंत्रण देने की घोषणा की है। यह संगीत समारोह 26 अप्रैल से होना है और उनके साथ शास्त्रीय संगीत गायक पंडित विश्वनाथ भी गाने वाले हैं। संगीत समारोह छह दिन चलने वाला है। पिछले वर्ष भी गुलाम अली को बुलाया गया था और उनका कार्यक्रम तब निर्विघ्न हुआ भी था।
संकटमोचन मंदिर प्रशासन ने इस बार पाकिस्तान के भारत स्थित उच्चायुक्त अब्दुल बासित, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा लोकप्रिय अभिनेता अमिताभ बच्चन को भी आमंत्रित किया है। लेकिन इस क्षेत्र की हिंदू युवा वाहिनी ने गुलाम अली को निमंत्रित किए जाने का कड़ा विरोध करते हुए धमकी दी है कि वह गुलाम अली को शहर में प्रवेश ही नहीं करने देंगे। जिस गंगा में सबके पाप धुल जाने और मंदिर में शिव तथा हनुमान की शरण में आने पर जीवन सार्थक हो जाने का विश्वास दिलाया जाता है, उसी पावन गंगा के किनारे से मंदिर की गलियों तक गुलाम अली के आने और गाने का विरोध करने वाले पोस्टर लगाए गए हैं।
शिव सेना के क्षेत्रीय नेता अरुण पाठक ने ट्विटर पर कहा- ‘पाकिस्तानी गुलाम अली से ज्यादा उन्हें बुलाने वाले दोषी हैं। पाकिस्तानियों ने हमारे संकटमोचन मंदिर को दहलाया था, उन्हें कार्यक्रम में बुलाना न सिर्फ संकटमोचन का अपमान है, अपितु देश के प्रति अपराध है।’ यह कितना बेहूदा तर्क है। पाकिस्तान मूल के आतंकवादियों ने कुछ वर्ष पहले संकटमोचन मंदिर में बम विस्फोट किया था, लेकिन इस घटना का गुलाम अली से क्या संबंध है? इसके विपरीत महंत मिश्र जी का तर्क है कि ‘कुछ लोग राजनीति चमकाने के लिए विरोध कर रहे हैं। असल में गुलाम अली तो बजरंगबली की आस्था के गुलाम हैं।’ वैसे भी संगीत के साधक का एकमात्र धर्म, जाति-संप्रदाय संगीत होता है।
वाराणसी, इलाहाबाद, मथुरा-आगरा, उज्जैन, सोमनाथ-द्वारका सहित अधिकांश ऐतिहासिक स्थलों पर हजारों विदेशी आते हैं। आजादी से पहले मुगलों और अंग्रेजों ने भी राज किया और संघर्ष-अत्याचार की घटनाएं हुईं। पाकिस्तान की तरह चीन से युद्ध भी हुआ। लेकिन भारत के किस शहर में ‘अतिथि’ का अपमान होता है? कभी होना भी नहीं चाहिए। असली भारतीय संस्कृति यह है कि ‘अतिथि’ का अपमान करने वालों को कड़ा दंड मिलना चाहिए।