चर्चाः पद के पाप का हिसाब-किताब । आलोक मेहता
सत्ता में आने के एक साल के अंदर एक 90 वर्षीय सामान्य नागरिक की आंख में धूल झोंक कर खडसे ने 40 करोड़ रुपये की जमीन पर कब्जा कर लिया। पराकाष्ठा यह है कि जमीन भी महाराष्ट्र सरकार की ही थी। बुजुर्ग जमीन का मुआवजा मांगने आया था। इस घोटाले के अलावा भी खडसे पर कई गंभीर आरोप हैं। कुछ के सबूत आ चुके हैं और सत्ता में आने के कारण तत्काल लोग खुलकर उनके विरुद्ध सामने नहीं आ रहे हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पार्टी में उतने वरिष्ठ नेता नहीं रहे हैं। इसका फायदा भी खडसे उठा रहे हैं ताकि उन पर कार्रवाई न की जा सके। भाजपाई बड़े गौरव के साथ दावा करते हैं कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक हैं। सत्य, निष्ठा और ईमानदारी उनके सबसे बड़े आदर्श हैं। लेकिन इस तरह के भ्रष्ट आचरण के मामले सामने आने पर सहजता से यही सवाल उठता है कि क्या यही संघ की शिक्षा-दीक्षा है? खडसे जैसे नेता करोड़ों की संपत्ति बनाने के बाद यह तर्क भी देते हैं कि यह सब उनकी पत्नी अथवा बेटे-बहू या बेटी-दामाद की है। वे यह नहीं बताते कि पत्नी के पास बिना किसी काम किए करोड़ों की पूंजी कहां से आ गई? दो वर्ष में दस-बीस करोड़ रुपये का मुनाफा कोई नया उद्यमी भी नहीं बना पाता। महाराष्ट्र जैसे राज्य में लाखों किसान परिवार और पशु भयावह सूखे के संकट का सामना कर रहे हैं लेकिन अधिकांश भाजपा नेता, मंत्री, सांसद और विधायक केंद्र में दो वर्ष के राज का जश्न मनाने तथा सफलता का ढोल बजाने में व्यस्त हैं। इस बीच खडसे घोटाला सामने आने पर प्रमाण मांगे जा रहे हैं। जबकि सबूत टी.वी. पर दिखाए जा चुके हैं। कांग्रेस राज में पवार या बंसल परिवार अथवा अजीत जोगी परिवार जैसे नेता भी यही तर्क देते थे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व मंत्री और उनके साथियों को जेल जाना पड़ा है और अभी अदालती कार्यवाही लंबी चलनी है। इस समय कांग्रेस ही नहीं, महाराष्ट्र में भाजपा सरकार की सहयोगी शिव सेना भी खडसे पर कार्रवाई की मांग कर रही है। यह कैसी लुका-छिपी है और किसी तरह की नैतिकता है? म. प्र. के व्यापम घोटाले में फंसे एक भाजपाई मंत्री को महीनों तक जेल में रहना पड़ा और उनके अलावा कई वफादार भाजपाई अदालत के दंड के अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में चावल घोटाले की गूंज है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और देश से भागे हुए ललित मोदी के वित्तीय संबंधों और घोटालों पर अब तक कोई कार्रवाई और फैसला नहीं हुआ है। नेताओं को पाप-पुण्य का हिसाब-किताब एक साथ ही जनता के सामने रखने में कष्ट क्यों होना चाहिए?