चर्चाः अभिव्यक्ति पर चौतरफा हमले | आलोक मेहता
लेकिन इससे कुछ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के समक्ष कई वरिष्ठ संपादकों और पत्रकारों ने यह बात रखी थी कि मानहानि के मामले में धारा 499 और 500 के तहत मामला दर्ज कर प्रारंभ में ही संपादक-पत्रकार को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किए जाने के प्रावधान पर पुनर्विचार होना चाहिए। मानहानि के मामले में अदालत से दोषी ठहराए जाने पर दंड दिए जाने पर आपत्ति नहीं हो सकती, लेकिन किसी प्रकाशन या प्रसारण पर आपत्ति के आधार पर सीधे गिरफ्तारी के प्रावधान से सत्ताधारी नेता, अफसर, पुलिस और कुछ हद तक असामाजिक तत्व ईमानदार और सत्य को उजागर करने वालों को प्रताड़ित भी किया जा सकता है। इस दृष्टि से भारत में विभिन्न कानूनों के साथ मानहानि के नियम-कानूनों पर पुनर्विचार की मांग जारी रहेगी। दूसरी तरफ हाल के वर्षों में मीडिया पर हमलों की संख्या में बढ़ोतरी रही है। शुक्रवार को बिहार में एक प्रमुख हिंदी दैनिक अखबार के ब्यूरो प्रमुख को सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई। झारखंड में एक टी.वी. संवाददाता की हत्या हो गई। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में कुछ महीने पहले ऐसी हत्या की घटनाएं सामने आई थी। बिहार-झारखंड में पत्रकारों की हत्या की निंदा के साथ राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही है। बिहार के पत्रकार की हत्या में जेल में बंद एक कुख्यात अपराधी और नेता से जुड़े लोगों के नाम लिए जा रहे हैं। यह बेहद खतरनाक स्थिति है। राजनेता, अपराधी और पुलिस की मिलीभगत पर वर्षों पहले एन.एन. वोहरा (वर्तमान में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल) समिति की रिपोर्ट आई थी। उनकी सिफारिशें तो आजतक फाइलों में बंद हैं लेकिन इस गठजोड़ से अपराध की घटनाएं बहुत बढ़ रही हैं। असामाजिक और सांप्रदायिक तत्व पाकिस्तान की तरह मीडिया को दबाने-कुचलने की कोशिश करने लगे हैं। इसे किसी राज्य का विषय न मानकर राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक प्रशासनिक ढंग से विचार होना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अक्षुण रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सर्वानुमति होनी चाहिए।