चर्चाः किसान को सरकारी छतरी। आलोक मेहता
लेकिन देश की 60 प्रतिशत आबादी गांवों के खेल-खलिहान के साथ फिल्मी अंदाज को जीना दूर रहा, अहसास भी नहीं कर सकते। खेती-बाड़ी पर निर्भर रहने वालों की आंखें आसमान के बादल, बरसात, सूरज-हवा पर टिकी रहती है। प्रकृति की कृपा रही तो होली-दीवाली खुशी रहती है। कोप रहने पर फसल नष्ट, आंसू, दर्द, कर्ज के तकाजे से लाखों किसानों की जिंदगी मुसीबत में फंस जाती है। सरकारें, साहूकार, बैंक कर्ज देते समय बहुत प्यार और सहायता का भाव दिखाते हैं। लेकिन समय आने पर मूलधन और ब्याज का तकाजा तलवार लटकाकर करते हैं। इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर जमींदारों और साहूकारों से गरीबों- आदिवासियों को कुछ राहत दिलाई।
फिर भी भी देश की आर्थिक प्रगति, उदार अर्थव्यव्यवस्था, गैर सरकारी बैंकों के विस्तार के बावजूद किसानों की हालत सुधरने के बजाय खराब हाेती गई है। बड़े किसान अब भी साधन संपन्न और सुखी माने जा सकते हैं। बिजली, पानी, खाद, बीज इत्यादि से सरकारी सब्सिडी का लाभ उन्हें मिल जाता है। लेकिन छोटे किसानों और उनसे जुड़े, खेतीहर मजदूराें का संघर्ष बढ़ता जा रहा है। कर्नाटक हो या उत्तरप्रदेश, तमिलनाडू अथवा पंजाब-हरियाणा सारी सुविधाओं के बावजूद हर साल बड़ी संख्या में कर्ज के बोझ, पारिवारिक-सामाजिक जिम्मेदारी के मानसिक दबाव में आत्महत्या करने लगे हैं। पिछले वर्षों के दौरान केंद्र और राज्य सरकाराें ने ‘फसल बीमा योजना’ शुरू की। किसानों से फसल बीमा के लिए हर साल कई हजार करोड़ रुपये जमा करवाए, लेकिन फसल नष्ट होने के बाद बीमा कंपनियों ने मुआवजे के नाम पर दस-बीस रुपये तक के मुआवजे चैक थमाए। यह घाव पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। अब मोदी सरकार ने फसल बीमा की प्रीमियम भी केवल दो-डेढ़ प्रतिशत करके समय पर उचित मुआवजा देने की घोषणा की है।
यह कदम स्वागत योग्य कहा जाना चाहिए। लेकिन सत्ता व्यवस्था को देखना होगा कि किसानों को दी जाने वाली छतरी निकम्मी, भ्रष्ट नौकरशाही के आंधी-तूफान को झेल सके। अधिकारी कर्मचारी भोले-भाले किसानों की आंखों में धूल झोंकने में माहिर हैं। बैंकों और बीमा कंपनियों में सरकारी व्यवस्था की तरह गड़बड़ियां सामने आती रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले दो वर्षों में 50 प्रतिशत किसानों को फसल बीमा योजना से लाभान्वित करना चाहते हैं। इरादे नेक और लक्ष्य बड़ा है। सन 2016 से 2019 के बीच महत्वपूर्ण चुनाव हैं। विधानसभाओं के चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी और भाजपा किसानों तक अपनी आवाज और योजना पहंुचाने का अभियान शुरू कर रहे हैं। मध्यप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश में मोदी की किसान रैलियों की तैयारी हो रही है। लेकिन उनकी घोषणाओं पर अमल राज्य सरकारें करेंगी और सरकारी छतरी कमजोर होने पर किसानों का श्राप भी राजनेताओं को भुगतना होगा।