चर्चाः रंग और जात पर पूर्वाग्रह अपराध | आलोक मेहता
इस घटना को हिंसा की सामान्य घटना और राजनीतिक आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए। ‘अतिथि देवो भवः’ के मंत्र के साथ आधुनिक भारत पर हम सब गौरव करते हैं। लेकिन आर्थिक प्रगति के बावजूद भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग में नस्ल, रंग और जाति को लेकर संकीर्ण पूर्वाग्रह बने हुए हैं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरु, अहमदाबाद, चंडीगढ़ जैसे शहरों में विभिन्न प्रांतों और देशों के लोग बड़ी संख्या में काम करते हैं। दलित, अल्पसंख्यक, पूर्वोत्तरी, अफ्रीकी अथवा यूरोपीय युवतियों और युवकों के साथ कार्यस्थलों अथवा सार्वजनिक जगहों पर अप्रिय व्यवहार की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में आम आदमी पार्टी के नेता की पहल पर अफ्रीकी युवक-युवतियों के साथ ज्यादती की शर्मनाक घटना पर बड़ा बवाल हो चुका है। इसी तरह पूर्वोत्तर राज्यों के युवाओं के साथ पूर्वाग्रही व्यवहार की घटनाएं होती रहीं हैं। दलित और अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव पर विभिन्न संस्थाओं में आवाज उठती रही हैं। सवाल यह है कि आधुनिक संचार माध्यमों और प्रगति के बावजूद ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं? चेहरे के रंग और जाति के आधार पर भेदभाव न करने की मूलभूत शिक्षा भारतीय समाज को क्यों नहीं मिल पा रही है? ब्रिटेन, जर्मनी, आस्ट्रेलिया या अमेरिका में किसी भी भारतीय के साथ नस्ली दुर्व्यवहार की घटना सामने आने पर भारत सरकार और सामाजिक संगठन ऊंची आवाज में विरोध व्यक्त करते हैं। अफ्रीका में तो महात्मा गांधी ने आजादी और मानवीय संबंधों के आदर्श स्थापित किए। उन्हें आज भी महान नेता के रूप में याद किया जाता है। अफ्रीका में भारतीयों के साथ बेहद सम्मान और प्रेमपूर्ण व्यवहार होता है। दो महीने पहले भारत में अफ्रीकी देशों के लिए सम्मेलन आयोजित हुआ, ताकि उन देशों के साथ आर्थिक-सांस्कृतिक संबंध मजबूत हों। अफ्रीकी छात्रों को शिक्षा देने के लिए भी हर साल छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। पर्यटन और व्यापार के लिए उनका स्वागत करने के अभियान चलाए जाते हैं। लेकिन दिल्ली या बेंगलूरु जैसी घटनाओं से सारे प्रयासों पर पानी फिर जाता है। जरूरत है समाज को रंग और जाति के पूर्वाग्रह त्यागने के संबंध में सही शिक्षा देने और जागरूकता लाने की।