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20 February 2016

चर्चा : अपने हाथ क्यों जलाएं ?। आलोक मेहता

हरियाणा के आरक्षण आंदोलन के दौरान उग्र-प्रदर्शनकारियों ने कुछ स्कूलों, बसों, अस्पतालांे की एंबुलेंस गाड़ियांे, पुलिस थानों को भी आग लगा दी। इन स्कूलों, अस्पतालों, थानों, बसों में जाट भाइयों द्वारा दिए गए टैक्स का धन ही तो लगा है। इन संस्थानों में जाट समुदाय के कर्मचारी भी तो जुड़े हुए हैं। हरियाणा पुलिस ने तो इस हद तक ‘उदारता’ का परिचय दिया कि एक बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जा रहे स्कूटर को भी आग लगाए जाने की घटना को रोक नहीं पाए। ऐसी निर्ममता तो किसी आंदोलन में नहीं हो सकती।

आंदोलन के कारण हरियाणा के 8 जिले प्रभावित हो गए हैं। यातायात-जनजीवन ठप्प है। दिल्ली की नाक के नीचे इस आंदोलन की चिंगारी दो महीने से सुलग रही थी। जम्मू-कश्मीर और असम जैसे राज्यों में भी इतने जिले एक साथ हिंसक आंदोलन में नहीं फंसते। चंडीगढ़ राजधानी होते हुए हरियाणा सरकार का एक कदम हमेशा दिल्ली में रहता है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विश्वस्त नामजद नेता हैं। सरकार और पार्टी आला कमान के निर्देशों को वह सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। चमत्कारिक ढंग से मुख्यमंत्री की गद्दी उन्हें मिल गई, लेकिन वह अब तक अपने पार्टी के प्रादेशिक नेताओं और कुछ वरिष्ठ मंत्रियों तक का विश्वास अर्जित नहीं कर सके। दो वरिष्ठ मंत्री तथा भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ऊपर से नामजद नेता को दिल-दिमाग से स्वीकार नहीं कर पाए इसलिए खट्टर अपने ढंग से सत्ता की राजनीति कर रहे हैं।

जाट आरक्षण आंदोलन के प्रारंभिक दौर में उन्होंने कद्दावर जाट नेताओं के बजाय पर्दे के पीछे जोड़-तोड़ करने वालों का सहारा लिया। इससे स्थिति विस्फोटक हो गई। अब कांग्रेस या इंडियन लोकदल और पार्टी के असंतुष्टों पर ‘षडयंत्र’ के आरोप लगाने का कोई औचित्य नहीं है। समय रहते उन्हें सभी पक्षों का सहयोग लेकर मेहनतकश लोगों के हरियाणा को हिंसा और बर्बादी से बचाना होगा। 

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TAGS: jaat reservation, manohar lal khattar, haryana, rohtak, alok mehta, जाट आरक्षण, मनोहर लाल खट्टर, हरियाणा, रोहतक, आलोक मेहता
OUTLOOK 20 February, 2016
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