चर्चा: घोड़े की चिन्ता, नहीं इंसानों की
यूं पार्टी की प्रादेशिक शाखा जोशी के समर्थन में खड़ी रही। यह पहला अवसर नहीं है, जबकि मेनका गांधी ने पशुओं के साथ अत्याचार के विरुद्घ कठोर तेवर अपनाए। सक्रिय राजनीति में रहकर वह घोड़े, कुत्ते, गाय सहित पशुओं के संरक्षण के लिए निरन्तर प्रयास करती हैं। कानूनी दृष्टि से गणेश जोशी द्वारा घोड़े पर लाठी से हमला गलत है और न्यायालय ही दंड तय करेगा। इसी तरह दिल्ली और देश के अन्य भागों में सड़क पर रहने वाले कुत्तों की जीवन रक्षा के लिए मेनका गांधी के अभियान को कानूनी समर्थन मिला हुआ है। लेकिन आदरणीय मेनकाजी हाल की इस रिपोर्ट पर मौन रहीं, जिसमें बताया गया कि मुंबई में आतंकवादी हमलों में मरने वालों से अधिक संख्या सड़क पर दौड़ने वाले कुत्तों के काटने से मरने वालों की है।
मुंबई में १३ लाख १२ हजार लोगों को पागल कुत्तों ने काटा और ४२९ की मृत्यु हुई। ये तथ्य सुप्रीम कोर्ट में वृहत्तर मुंबई नगर-निगम ने प्रस्तुत किए हैं। राजधानी दिल्ली में भी आवारा कुत्तों के आतंक पर सैकड़ों शिकायतें दर्ज होती हैं। लेकिन मेनका अभियान के कारण नगर-निगम कुत्तों पर नियंत्रण नहीं कर पाता और हजारों लोग शिकार होते हैं। देश के अन्य भागों की स्थिति भी इससे बेहतर नहीं है। जिस उत्तराखंड में घोड़े के घायल होने पर इतना बवाल है, वहां कई गांवों में जंगली पशु स्कूल जाते बच्चों या खेत में काम कर रहे मजदूरों पर हमले कर मारते रहते हैं। लेकिन वन्य पशु संरक्षण कानूनों के कारण वन्य पशुओं की रक्षा पर प्रशासन अधिक ध्यान देता है। मेनकाजी के निर्वाचन क्षेत्र पीलीभीत और संपूर्ण उत्तर प्रदेश में पशुओं अथवा अपराधियों द्वारा आए दिन मासूम लोग घायल होते या मारे जाते हैं। लेकिन उनके विरुद्घ मंत्री महोदय का गुस्सा कभी नहीं दिखाई देता। कभी भाजपा या अन्य संगठनों के प्रदर्शनों के दौरान भिड़ंत होने पर पुलिसकर्मी भी घायल होते हैं। उनके लिए दुःख जताने कोई मंत्री नहीं जाता। विडंबना यह है कि देश के कुछ नेताओं को सामान्य लोगों की अपेक्षा पशुओं की चिंता अधिक रहती है। कम से कम शहरों में विक्षिप्त आवारों कुत्तों से बच्चों-महिलाओं को बचाने पर तो अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।