चर्चाः सिंहासन पर बैठ कांव कांव | आलोक मेहता
खासकर, जिन बातों से संपूर्ण समाज को नुकसान होता हो और किसी इलाके में सांप्रदायिक आग भड़के या राजनीतिक कारणों से कार्यकर्ताओं में हिंसक भिड़ंत होने लगे। लेकिन इन दिनों जिम्मेदार कही जाने वाली पार्टियों के नेता ऐसी हरकतें कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के सांसद हुकुम सिंह ने उ.प्र. के कैराना कस्बे में ‘मुस्लिमों के आतंक से हिंदुओं के पलायन’ का गंभीर आरोप सार्वजनिक रूप से लगाया। एक सूची भी जारी कर दी। प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में हंगामा सा मच गया। लखनऊ से दिल्ली तक आपत्ति होने के बाद हुकुम सिंह ने माना कि यह पलायन सांप्रदायिक कारणों से नहीं हुआ, वरन अपराध बढ़ने और डर के कारण हुआ। यही नहीं उनकी पहली सूची भी गलत साबित हुई। यह बात अलग है कि बढ़ते अपराधों से पलायन के मुद्दे को भाजपा राजनीतिक मुद्दे के रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है। लेकिन भाजपा सांसद या उनके समर्थक महंत अथवा कोई साध्वी द्वारा सांप्रदायिक भाषणों से माहौल को उत्तेजक बनाना बेहद खतरनाक है। ऐसे प्रयासों को शीर्षस्थ स्तरों पर नियंत्रित किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश अकेला राज्य नहीं है, महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली में इस तरह के गैर उत्तरदायी अभियान चल रहे हैं।
राजधानी दिल्ली में तो पराकाष्ठा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हर मंच पर अशोभनीय बयानों के साथ केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री और उप राज्यपाल के विरुद्ध टिप्पणी करते रहते हैं। दिल्ली के परिवहन मंत्री गोपाल राय को उनकी गड़बड़ी के कारण हटने या 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति सारे नियम-कानून तोड़कर किए जाने पर राष्ट्रपति के फैसले के विरुद्ध प्रलाप बेहद दुःखद एवं हास्यास्पद है। देश का पहला मुख्यमंत्री कह रहा है- ‘मोदीजी मुझे मार लीजिए, पीट लीजिए लेकिन दिल्ली वालों पर ज्यादती न करें।’ अब यह रोना पीटना ही तो है। देश का कोई प्रधानमंत्री क्या जनता के साथ ज्यादती कर सकता है? जनता को ऊल-जलूल बयानों से भ्रमित कर उन्हें धोखा देना जनप्रतिनिधि के लिए अपराध ही कहा जाएगा। मुख्यमंत्री या सांसद को अपनी नैतिक जिम्मेदारी और आरोप-प्रत्यारोप की सीमाओं का पालन करना चाहिए।