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12 April 2016

चर्चाः धर्म के नाम पर गुमराह न करें | आलोक मेहता

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शंकराचार्य से वेदों का ज्ञान, सामाजिक नैतिक मूल्यों और आदर्शों की बातों की अपेक्षा होती है। उनके पास तो देश के शीर्षस्‍थ राजनेता, उद्योगपति और जन-सामान्य भी आशीर्वाद तथा मार्गदर्शन पाने के लिए पहुंचते हैं। यदि कोई अन्य संगठन और नेता महिलाओं के संबंध में ऐसी आपत्तिजनक टिप्पणी कर देता, तो कानूनी दृष्टि से भी कार्रवाई हो सकती है।

कहीं हरियाणा या उ.प्र. की खाप पंचायतें महिलाओं के विरुद्ध फरमान जारी करती हैं, कहीं आसाराम बापू जैसे लोग बलात्कार और हत्या के आरोपों में जेल पहुंचते हैं। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी के रूप में पूजनीय माना गया है। उनके बिना कोई धार्मिक अनुष्‍ठान संपन्न नहीं माना जाता था। असली भारतीय परंपरा में पश्चिम के देशों से अधिक स्वतंत्रता और महत्व भारत में महिलाओं के प्रति रहा है। विदेशी हमलों और परतंत्रता के दौरान स्थिति बिगड़ी, लेकिन आजादी के 68 वर्ष बाद कुछ संगठन और धार्मिक नेता तुगलकी अंदाज में कट्टरपंथी नियमों की आवाज उठाने लगे हैं।

पोंगापंथी किसी एक धर्म से ही जुड़े हुए नहीं हैं। तालिबानी फरमान से अफगानिस्तान तबाही के कगार पर पहुंचा। भारतीय लोकतंत्र में महिलाएं सर्वोच्च पदों पर पहुंची हैं। राजनीति, प्रशासन, उद्योग-व्यापार, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्‍थ्य, संचार, विज्ञान-टेक्नोलॉजी, सेना, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे क्षेत्रों में महिलाएं महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। उनको आगे बढ़ाने के लिए सरकारें और कई सामाजिक संगठन नए-नए कार्यक्रम चला रहे हैं। इस स्थिति में कूपमंडूक और तालिबानी विचारों को समय रहते किनारे करने और अभिव्यक्ति के दुरुपयोग पर नियंत्रण के लिए भी विचार होना चाहिए।

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TAGS: शंकराचार्य, स्वरूपानंद सरस्वती, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों, क्रांतिकारी बदलाव, तालिबानी फरमान
OUTLOOK 12 April, 2016
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