चर्चाः शिक्षा न व्यापार, न रहे मोहताज | आलोक मेहता
अदालत ने म.प्र. सरकार द्वारा डेंटल कॉलेजों में प्रबंधन कोटे में 50 प्रतिशत सीटें सरकार को दिए जाने के अधिकार को उचित ठहराया है। सरकार द्वारा कानून बनाकर इस तरह का प्रावधान किए जाने पर डेंटल कॉलेजों के प्रबंधन ने चुनौती दी थी, लेकिन अदालत ने जनहित में कानूनी प्रावधान को उचित ठहरा दिया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार का अधिकार केंद्रीय कानून के तहत देखा जाएगा। कानून होने पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाएगी और कोई विवाद होने पर संविधान के अनुच्छेद 254 को ध्यान में रखकर समाधान किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक संस्थानों द्वारा स्वयं मनमाने ढंग से प्रवेश प्रक्रिया बनाए जाने को भी अनुचित ठहराया। निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट का फैसला म.प्र. के डेंटल कॉलेजों में प्रबंधन द्वारा कई सीटें लाखों रुपये लेकर बांटे जाने के विशेषाधिकार पर अंकुश लगाएगा। व्यापमं घोटाले में भी यह तथ्य उजागर हुआ था कि मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश और नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर धांधली होती रही है। विभिन्न राज्यों में एक तरफ बहुत अच्छे स्तर के स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय हैं, दूसरी तरफ कुकुरमुत्ते की तरह फैले स्कूल-कॉलेज भी खुल गए हैं। सरकारी शिक्षण संस्थानों की कमी है और उनके पास संसाधनों का संकट रहता है। गरीब और कम शिक्षित परिवार अपने बच्चों को अंग्रेजी के साथ अच्छी शिक्षा के नाम पर निजी स्कूलों की मनमानी फीस भी चुकाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कॉलेजों की 50 प्रतिशत सीटें सरकार के पास रहने का लाभ तभी हो सकेगा, जबकि सत्ताधारी पूर्वाग्रह और भ्रष्टाचार के बिना योग्य बच्चों को शिक्षा की सुविधाएं दिलाएं। शिक्षा सत्ता की मेहरबानी की मोहताज भी नहीं होनी चाहिए। भारत में स्कूली शिक्षा का स्तर श्रेष्ठ और हर वर्ग के लिए समान सुविधाजनक बनाए जाने की जरूरत है। दुर्भाग्य है कि हथियारों पर हजारों करोड़ खर्च करने वाली सरकारें शिक्षण संस्थानों और सुविधाओं के लिए बजट में अधिकाधिक प्रावधान नहीं करतीं। न्यूनतम शिक्षा अच्छी और सस्ती होने पर उच्च स्तर की शिक्षा भी बेहतर होगी और देश का भविष्य उज्ज्वल होगा।