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19 January 2016

चर्चाः मैदान से सिंहासन तक फिक्सिंग | आलोक मेहता

गूगल

बीबीसी और बजफीड द्वारा की गई खोजबीन में पता चला कि पिछले 10 वर्षों के दौरान शीर्ष 50 में से 16 खिलाड़ियों पर बार-बार मैच फिक्सिंग के आरोप सामने आए। टेनिस, फुटबाल, हॉकी में जितनी तेजी के साथ मुकाबले होते हैं, फिक्सिंग करने-कराने वालों को अधिक मशक्कत करनी पड़ती होगी। धन के लिए ईमान और कॅरिअर दांव पर लगाने वाले खिलाड़ी करोड़ों खेल प्रेमियों के साथ धोखे का गंभीर अपराध भी करते हैं।

 

क्रिकेट में फिक्सिंग पर कई वर्ष पहले भारत में सबसे पहले ‘आउटलुक’ पत्रिका ने ही सनसनीखेज रहस्योदघाटन किया था। बहुत से लोगों को इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे आरोपों की पुष्टि होने लगी। भारत ही नहीं पाकिस्तान और अन्य देशों के खिलाड़ियों पर आरोप सामने आए। खेल संघों की राजनीति भी उजागर हुई। कल ही बीसीसीआई ने 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में हरियाणा के ऑफ स्पिनर अजीत चंडीला पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया। एक अन्य आरोपी मुंबई के बल्लेबाज हिकेन शाह पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया। कीर्ति आजाद ने क्रिकेट संघ के भ्रष्टाचार पर वर्षों से अभियान छेड़ा हुआ है। अदालतें भी यह महसूस करने लगी हैं कि राजनेताओं को खेल संगठनों की राजनीति नहीं करनी चाहिए। सट्टेबाज, राजनेता और खेल के व्यवसायिक हितों से जुड़ी कंपनियां मैदान को पवित्र नहीं रहने देतीं।

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नेता छत्तीसगढ़, झारखंड या उत्तरप्रदेश में सिंहासन पर बने रहने के लिए राजनीतिक फिक्सिंग करते रहते हैं। राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए अदालतें और चुनाव आयोग समय-समय पर कार्रवाई करता है। लेकिन खेलों में अधिक ईमानदारी और निष्ठा की जरूरत है। आचार संहिताएं बनी हुई हैं, लेकिन उनका पालन भी होना चाहिए। चीन या अमेरिका जैसे देशों में ओलिंपिक के लिए निरंतर तैयारी चलती है। भारत में भी श्रेष्ठतम युवाओं की कमी नहीं है। जरूरत इस बात की है कि उन्हें प्रोत्साहन देने के साथ समुचित प्रशिक्षण और सुविधाएं दी जाए और राजनीतिक फिक्सिंग से बचाया जाए।

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TAGS: खेल, क्रिकेट, टेनिस, फिक्सिंग, सट्टेबाजी, नेता, खेल की राजनीति, अदालतें, चुनाव आयोग, आलोक मेहता
OUTLOOK 19 January, 2016
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