चर्चाः मुफ्त बिजली, महंगा सौदा | आलोक मेहता
बिजली के अलावा महिलाओं को मोपेड खरीदने पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी देने का वायदा किया गया है। गरीबी रेखा से नीचे माने जाने वाले परिवारों की बेटियों के विवाह के लिए सहायता दी जाएगी। वायदे निश्चित रूप से महिलाओं के जीवन स्तर सुधारने के लिए अच्छे हैं। लेकिन मुफ्त बिजली-पानी देने के वायदे विभिन्न राज्यों में महंगे साबित हुए हैं। सरकारों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है और सत्ता बदलने के बाद नई सरकारों को अन्य रास्ते खोजने पड़ते हैं। कुछ राज्यों में निर्णय बदल जाते हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए सीमा से अधिक वायदों का नुकसान देर-सबेर पार्टियों को उठाना पड़ता है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने मुफ्त पानी और एक सीमा में बिजली दरें न्यूनतम रखने की घोषणा की थी। लेकिन दिल्ली में निम्न आय वर्ग के हजारों लोग किराये के मकान में रहते हैं और मकान मालिक उन्हें किराये की कोई रसीद नहीं देते। वे किराये के साथ अपने ढंग से बिजली की धनराशि वसूलते हैं। मजबूर आदमी यदि विरोध करे, तो मकान खाली करना होगा और नया मालिक भी वही रुख अपनाएगा। इसलिए घोषणा पर सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता। फिर एक वर्ग को मुफ्तखोरी की आदत से समाज के अन्य वर्गों में आक्रोश उत्पन्न होता है। राजनीतिक दलों और उनकी सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिये, जिसे बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य की न्यूनतम सुविधाएं सबके लिए अच्छी और समान हो। सब्सिडी सही ढंग से जरूरतमंदों के पास पहुंचे। किसानों और मजदूरों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण विभिन्न राज्यों में उपयुक्त पात्रों तक नहीं पहुंच पाती। सरकार ने बैंक खातों में सब्सिडी पहुंचाने का एक रास्ता निकाला है। संभव है, इससे स्थिति में कुछ सुधार हो। लेकिन अभी मंजिल दूर है।