चर्चाः टैक्स वसूली के बदले सुविधा भी | आलोक मेहता
प्रधानमंत्री की अपेक्षा और सलाह से कोई असहमत नहीं होगा। लेकिन केवल करदाताओं की संख्या और सरकारी खजाने में दुगुनी रकम आने का लक्ष्य ठीक नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि केवल भारत में लोग कम से कम कर देने की कोशिश करते हैं। दुनिया के अधिकांश देशों में यही प्रवृत्ति है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका या यूरोप में लोग कर में छूट के रास्ते नहीं खोज लेते। मामूली नियमों में फेरबदल और अधिकारियों का लक्ष्य बढ़ाने से संपूर्ण व्यवस्था ठीक नहीं होगी। सामान्य मध्यम वर्ग और वेतनभोगी लोगों से तो मूल स्रोत से ही टैक्स वसूल हो जाता है। लेकिन निजी क्षेत्र में बड़ी संख्या में दुकान, कंपनियां अथवा प्रभावशाली लोग वर्तमान कर नियमों के प्रावधानों के अनुसार बही-खाते में जोड़-तोड़ करके करोड़ों रुपयों का टैक्स बचा लेते हैं। इसलिए सक्षम और संपन्न करदाताओं को समुचित कर देने की शिक्षा-दीक्षा और जरूरत पड़ने पर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए। उत्पादन, आयात-निर्यात, नई कंपनियां बनाने इत्यादि के लिए करों में छूट भी उचित हो सकती है। लेकिन दस हजार करोड़ रुपया कमाने वाली कंपनियां और दस बीस करोड़ वार्षिक वेतन लेने वालों से कुछ अधिक टैक्स वसूली क्यों नहीं हो सकती? आस्ट्रेलिया में तो अधिक आमदनी वालों पर 60 प्रतिशत टैक्स लग जाता है। यूरोप में भी ऐसे लोगों पर भारत के मुकाबले टैक्स अधिक है। इसी तरह हजार-पांच सौ एकड़ जमीन वाले संपन्न किसानों पर टैक्स लगाने वाले प्रस्ताव पर पिछले 70 वर्षों में कोई सरकार निर्णय नहीं कर पाई। भूमि सीमा तय कर कृषि क्षेत्र में भी टैक्स पर विचार होना चाहिए। इन सबसे अधिक जरूरी है- टैक्स देने वाले पांच-दस करोड़ नहीं सवा अरब की आबादी को सरकारी खजाने से शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सुविधाओं के साथ सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध करने की।