चर्चाः भारत रत्न की तो सुन लें | आलोक मेहता
एडीटर्स गिल्ड द्वारा आयोजित राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान के दौरान शुक्रवार को अमर्त्य सेन ने देश की वर्तमान सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक दुर्दशा के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार को भी दोषी ठहराया। इसलिए वर्तमान सत्ता व्यवस्था के तहत देश में असहिष्णुता बढ़ने पर उनकी चिंता को सरकार द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए। 82 वर्षीय अमर्त्य सेन अधिकांश समय प्रवासी प्रोफसर के रूप में विदेशों में ही रहते हैं। ऑक्सफोर्ड में उन्होंने रहने के लिए एक छोटा सा मकान भी ले रखा है। लेकिन भारत के प्रति गहरे लगाव के कारण उन्होंने अपनी नागरिकता बरकरार रखते हुए भारतीय पासपोर्ट नहीं बदला है। इस कारण दुनिया के कई देशों की यात्रा की पूर्वानुमति (वीजा) के लिए उन्हें दूतावासों की पंक्ति में खड़ा होना पड़ता है।
उन्हें भारत को लेकर नहीं, भारत की शासन व्यवस्था को लेकर बेहद निराशाजनक पीड़ा है। इसीलिए उन्होंने भारतीय संपादकों के साथ-साथ संपूर्ण समाज को असहिष्णुता को अधिक नहीं सहने की सलाह दी। यह सहनशीलता ठीक नहीं है। उनका तर्क है कि जब अल्पसंख्यकों पर एक संगठित विरोधी वर्ग द्वारा हमला किया जाता है तो समाज इसका प्रतिकार करे। धर्म के नाम पर भिन्न विचारों, धर्मावलंबियों, खान-पान पर अंकुश अनुचित है। इसी तरह ब्रिटिशकाल की कानूनी धारा 245 ए के तहत कार्रवाई भी गलत है। सुप्रीम कोर्ट ऐसे कानून की समाप्ति के लिए विचार कर फैसला दे सकती है। ‘भारत रत्न’ वास्तव में अपने पूर्वज स्वतंत्रता सेनानियों के गांधीवादी रास्ते से देश के हर नागरिक को शिक्षा तथा स्वास्थ्य की मूलभूत न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के पक्ष में हैं। अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य के बजट में कटौती का वर्तमान रवैया खतरनाक है। महान अादर्शों के महान भारत की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार क्या अपने ‘रत्न’ की चमक का कोई लाभ उठा पाएगी?