चर्चाः दिल्ली में ‘जंगलराज’ पर कोर्ट का गुस्सा | आलोक मेहता
महिलाओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस कर्मचारी नहीं होने संबंधी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र एवं दिल्ली की सरकारों को आड़े हाथ लिया है। कोर्ट की नाराजगी स्वाभाविक है, क्योंकि सरकारी पक्ष समस्या से निपटने की कठिनाइयां गिना रहा है। वहीं व्यवस्था सुधारने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। यह मामला 2012 से अदालत में चल रहा है। अपने एक-एक प्रचार अभियान पर 10 से 15 करोड़ रुपये खर्च कर रही केजरीवाल सरकार के मातहत चल रही फारेंसिक लैब में आपराधिक मामलों के करीब 11 हजार नमूने जांच के लिए पड़े हुए हैं। लैब के पास पर्याप्त साधन नहीं है और संबंधित विभाग उस पर ध्यान नहीं दे रहा है। इसी तरह केंद्र सरकार के तहत दिल्ली पुलिस में करीब 14 हजार स्थान खाली पड़े हैं। नई भर्ती और पुलिस चौकसी के नए संसाधनों के लिए पर्याप्त फंड नहीं है। कोर्ट पिछले दो वर्षों से हर सुनवाई के समय स्थिति सुधारने का आग्रह करती रही है। इस बार दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूति बी.डी. अहमद एवं संजीव सचदेव ने सरकारी पक्ष से कहा कि ‘यदि सरकार कुछ नहीं करना चाहती, तो बता दे। अदालत इस मामले पर सुनवाई ही बंद करेगी।’ दोनों सरकारों की ओर से अगली सुनवाई में ठोस कदमों की जानकारी देने का आश्वासन दिया गया है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि विज्ञापनों के अलावा पुलिस व्यवस्था में कोई विशेष बदलाव नहीं किया गया है। राजधानी के विभिन्न इलाकों में पुलिस पेट्रोलिंग बेहद ढीली-ढाली है। पुलिस की गाड़ियां लेकर पुलिसकर्मी कहीं किनारे बैठे रहते हैं। महिलाओं के साथ छेड़खानी, अपहरण, दहेज मांगने और हत्या के अपराधों की संख्या में तीन वर्षों के दौरान तेजी से बढ़ोतरी हुई है। बिहार, उ.प्र. जैसे राज्यों में अपराध को लेकर मीडिया और राजनीतिक गलियारों में बेहद हल्ला होता है, लेकिन सरकार की नाक के नीचे ‘जंगलराज’ जैसी लूटपाट पर सरकर कुछ नहीं कर पा रही है। अपराध लंदन, न्यूयॉर्क, मास्को और बीजिंग जैसी राजधानियों में भी होते हैं, लेकिन दिल्ली में अपराधों पर अंकुश के लिए इंतजाम नहीं होने से अपराध बढ़ते जा रहे हैं। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच ऐसे मामलों में राजनीतिक दांव-पेच के बजाय त्वरित निर्णय और क्रियान्वयन की जरूरत है।