चर्चाः सांसद बाजा बजाएं, तो काम भी करें | आलोक मेहता
निश्चित रूप से जन-धन योजना, गरीब परिवारों को एल.पी.जी. कनेक्शन, बिजली-सड़क परियोजनाओं का लाभ अधिकाधिक लोगों को मिलना चाहिए। कुछ राज्यों में कल्याण की योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से हो रहा है और कुछ राज्यों में गरीब लोग न्यूनतम सुविधाओं से वंचित हैं। इसका बड़ा कारण सांसदों-विधायकों की निष्क्रियता भी है। प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के क्रियान्वयन में तो बड़ी धनराशि की जरूरत नहीं थी, लेकिन भाजपा सांसद, विधायक, पार्षदों ने अपने इलाकों में कोई ठोस प्रयास नहीं किए। केंद्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में स्वच्छ भारत योजना अथवा गरीबों को एल.पी.जी. गैस कनेक्शन का लाभ नहीं मिल रहा है। प्रभावशाली नेता अपने संसदीय-विधायिका क्षेत्रों की समस्याओं को देखने-समझने तक नहीं जाते। पहली बार संसद में पहुंचे कुछ सांसद तो इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि वे उनके दरवाजे पर पहुंचने वाले लोगों की मांगों-आवेदनों से परेशान हैं। केवल दिल्ली-मुंबई ही नहीं दूरदराज के स्थानीय नेताओं को सलाह दी गई है कि वे मोबाइल फोन, फेसबुक, ट्विटर, इंटरनेट से लोगों को भाजपा सरकार के कार्यक्रमों एवं लाभ का प्रचार करें। शायद शीर्ष नेतृत्व इस असलियत से अपरिचित है कि डिजिटल क्रांति के बावजूद करोड़ों लोग अब भी संचार के आधुनिकतम साधनों का सीमित उपयोग कर पा रहे हैं। मोबाइल फोन से घर-परिवार के लोगों से बात करने और मजदूरी इत्यादि के लिए पहुंचने के अलावा उन्हें और कुछ नहीं आता। लाखों लोगों के पास किराये के मकान की अधिकृत रसीद तक नहीं होती। उन्हें सस्ती बिजली कैसे मिल सकती है? पेयजल तक के गंभीर संकट में समय रहते प्रयास नहीं किए जाने से जनता परेशान हो रही है। सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों में दस करोड़ खाते खुलवा दिए, लेकिन सांसद-विधायकों ने कभी जाकर देखा है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में दूरदराज के गरीब स्त्री-पुरुष महानगरों से मजदूरी का पैसा घर गांव भेजने के लिए घंटों तक लाइन में लगे रहते हैं? राष्ट्रीयकृत बैंकों और डाकघरों में कर्मचारी कम हो रहे हैं और कंप्यूटर के सर्वर आए दिन ठप पड़े होते हैं। इस दृष्टि से बाजा बजाने से अधिक जरूरी व्यावहारिक सहायता एवं निगरानी है।