चर्चाः भ्रष्ट अवसरवादियों से छुटकारा जरूरी। आलोक मेहता
अजीत जोगी पर मध्य प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारी रहते हुए गड़बड़ी के आरोप लगते रहे। कांग्रेस सरकार रहते हुए उनके घर पर छापेमारी भी हुई। लेकिन कांग्रेस सरकार ने उदारता दिखाई। रातों रात राज्य सभा का सदस्य बनवा दिया। दलित आदिवासी ईसाई का तमगा लगाकर जोगी ने अर्जुन सिंह के सहारे कांग्रेस नेतृत्व को प्रभावित करने में सफलता पाई। इसीलिए विभाजन के बाद वह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बन गए। छत्तीसगढ़ में दशकों से राजनीतिक जमीन तैयार करने वाले शुक्ला बंधु, मोतीलाल वोरा और अरविंद नेताम को जोगी ने पीछे कर दिया। भ्रष्टाचार और बेटे पर आपराधिक गतिविधियों के गंभीर आरोपों के बावजूद जब अजीत जोगी को नहीं हटाया गया तो 2003 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बुरी तरह पराजित हुई और आज तक उबर नहीं पाई। जोगी परिवार पर कांग्रेस आलाकमान मेहरबान रहा। इसलिए अन्य प्रादेशिक नेता एवं कार्यकर्ता कटते गए। अमित जोगी पर हत्या तक के गंभीर आरोप लगे। अब अजीत जोगी की राज्य सभा का टिकट देने की मांग कांग्रेस नेतृत्व ने नहीं मानी। सो, अजीत जोगी ने विद्रोह कर नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। जोगी की ब्लैकमेलिंग से कांग्रेस की छवि बिगड़ती रही है। इस दृष्टि से यह पहला अवसर है, जब कांग्रेस ने कड़ा रुख अपनाया। यों इतिहास इस बात का गवाह है कि विद्रोह कर क्षेत्रीय हितों के नाम पर नई पार्टी बनाने वाले कांग्रेसी या भाजपाइयों ने कोई कमाल नहीं किया है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश जैसे प्रदेशों में विद्रोहियों की पार्टी विफल रही और दो-चार लोगों के गुट की तरह सीमित हो गई। भाजपा से निकले कद्दावर नेता कल्याण सिंह विद्रोह और नई पार्टी के बाद भी सिक्का नहीं जमा सके और अंततोगत्वा पुनः भाजपा में शामिल हुए। हरियाणा में भजनलाल और हिमाचल में सुखराम का हश्र भी ऐसा ही हुआ। इसलिए जोगी के पलायन से कांग्रेस को संतुष्ट होने के साथ सबक लेना चाहिए कि भ्रष्ट लोगों को तरजीह न दी जाए।