चर्चाः हिमालय से नई रोशनी | आलोक मेहता
उत्तर में चीन और दक्षिण में भारत के साथ रिश्ते निभाने में नेपाल के महाराजा से लेकर हर प्रधानमंत्री चतुर रहे हैं। लेकिन व्यावहारिक पहलु यह भी है कि सामाजिक-सांस्कृतिक परंपरा, संसाधनों में विश्वसनीयता तथा लोकतांत्रिक लचीलेपन के कारण नेपाल को भारत से अधिक निकटता महसूस होती है। नए संविधान में मधेशियों के हितों की उपेक्षा से एक बड़ा आंदोलन नेपाल में चला। सीमावर्ती क्षेत्रों में आंदोलन की उग्रता के कारण नाकेबंदी से नेपाल को आवश्यक दैनन्दिन आपूर्ति ही बंद हो गई। नेपाल के एक वर्ग ने इस स्थिति को भारत विरोधी बनाने की कोशिश की। नेपाल की नई सरकार ने भी आंखें थोड़ी लाल की। चीन ने अपने विशालकाय भुज आगे बढ़ाए। भारत सरकार को भी अंदर-बाहर आलोचना झेलनी पड़ी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के तत्काल बाद पड़ोसी देशों में नेपाल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी थी। फिर भी प्रतिकूल वातावरण और रिश्तों में खटास से उनकी कूटनीति पर प्रश्नचिह्न उठने लगे। लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश सचिव एस. जयशंकर धैर्यपूर्वक डोरी को साधे रखे। नतीजा यह है कि मधेशी आंदोलन पर विराम के साथ आज से नाकेबंदी खत्म हो गई। गाड़ी पटरी पर आने में कुछ दिन लग सकते हैं, लेकिन यह अब तेजी से चलने वाली है। नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. ओली अब चीन के बजाय पहले 19 फरवरी को भारत यात्रा पर आ रहे हैं। पांच दिवसीय यात्रा से सारे गिले-शिकवे दूर होंगे। मधेशियों के हितों की रक्षा के लिए उचित व्यवस्था होगी। आर्थिक संबंधों का नया अध्याय शुरू होगा। वैसे भी वसंत पंचमी के बाद और होली के आसपास भारत-नेपाल में अधिक खुशी दिखाई देती हैं। हिमालय की बर्फ पर सूरज की रोशनी अधिक चमक लाती रहेगी।