चर्चा : नारी उपदेश बहुतेरे | आलोक मेहता
निश्चित रूप से देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था में महिलाएं महत्वपूर्ण योगदान देती रही हैं। इस सम्मेलन में संसद-विधान सभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित किए जाने के वर्षों पुराने प्रस्ताव पर कोई ठोस उत्तर शीर्ष नेताओं की ओर से नहीं दिया गया। आर्थिक नीति में जीएसटी के लिए भाजपा सरकार राज्यसभा में कांग्रेस के असहयोग की लगातार तीखी भर्त्सना कर रही है। लेकिन महिला आरक्षण के मुद्दे पर तो कांग्रेस रुकावट नहीं बन सकती है। महिला आरक्षण का विधेयक मार्च 2010 में राज्यसभा में पारित करा दिया था, लेकिन 2014 में लोकसभा भंग होने की वजह से विधेयक सहित पूरा प्रस्ताव लटक गया। अब लोकसभा में भाजपा के पास भारी बहुमत है एवं राज्यसभा में कांग्रेस का वर्चस्व है। ऐसी स्थिति में दो बड़े राजनीतिक दल चाहें तो वामपंथी दों के पूर्व घोषित समर्थन के आधार पर किसी भी दिन जनप्रतिनिधित्व का क्रांतिकारी प्रावधान कर सकते हैं। भाजपा दो वर्षों से सत्ता में है। उसने महिला सशक्तिकरण के लिए इस विधेयक को सर्वोच्च प्राथमिकता क्यों नहीं दी? इसी तरह से कांग्रेस और भाजपा चुनावी उम्मीदवारों के चयन में 33 प्रतिशत महिलाओं को स्थान क्यों नहीं देते ? इसके लिए क्या किसी कानून की जरूरत है ? आम आदमी के नेता अरविंद केजरीवाल ने पार्टी की दिल्ली में भारी बहुमत के बावजूद किसी महिला को मंत्री नहीं बनाया। इसलिए महिलाओं को बड़े-बड़े उपदेश देने वाली देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और शीर्ष नेताओं को सही इच्छाशक्ति दिखानी होगी। पिछड़ों और दलितों के नेता आरक्षण में भी आरक्षण चाहते हैं। फिर वे अपनी पार्टियों में इतनी महिलाओं को संगठन में महत्व क्यों नहीं देते। पांच औऱ छह मार्च को हुए महिला नेता सम्मेलन का आयोजन बहुत पहले से तय था और विदेशी महिला नेता भी अतिथि के रूप में आ गईं। लेकिन भाजपा की अपनी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, बंगाल की जमीनी नेता ममत बनर्जी, बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और जम्मू-कश्मीर की वरिष्ठ महबूबा मुफ्ती की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कोशिश क्यों नहीं हो पाई ? केवल भव्य समारोह, भाषण, वायदे एवं जयजयकार से क्या महिलाओं का सशक्तिकरण हो जाएगा ?