चर्चाः असली-नकली डिग्री की राजनीति | आलोक मेहता
पहले स्मृति ईरानी की शिक्षा-दीक्षा पर सवाल उठे। फिर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी इत्यादि की शिक्षा-दीक्षा के रिकार्ड पर सवाल उठाए। आम आदमी पार्टी ने पिछले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बी.ए., एम.ए. की डिग्रियों पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए व्यक्तिगत और प्रधानमंत्री पद की गरिमा को गिराने का अभियान चला दिया। पहले गुजरात और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय ने तथ्यों के साथ विवरण बता दिया। अपने प्रधानमंत्री पर उछाले गए कीचड़ को धोने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तथ्यों के साथ असली डिग्रियों की प्रतिलिपि जारी कर दी। इसके बावजूद आम आदमी पार्टी ने अपनी झाड़ू पीछे नहीं हटाई। वह बेहद बेतुके तर्क पेश कर रही है। पार्टी के नेता एक डिग्री में ‘नरेंद्र कुमार दामोदरदास मोदी’ और दूसरी में ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी’ अंकित होने के आधार पर इन्हें नकली बता रहे हैं। लगता है आम आदमी पार्टी के नेताओं का एक वर्ग कंप्यूटर टेक्नोलॉजी पर ज्यादा भरोसा करता है। जबकि कंप्यूटर सब कुछ ‘सत्य’ और ‘असली’ नहीं निगलता। उसमें जो फीड किया जाता है, वही निकलता है। मोदी सहित भारत के करोड़ों लोगों को अस्सी के दशक से पहले हस्तलिखित रिकार्ड से परीक्षा परिणाम और डिग्रियां मिली हैं। हजारों लोगों ने स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों में सुविधानुसार नाम, जन्म तिथि, पते इत्यादि में नियमानुसार कुछ परिवर्तन किए होंगे। आम आदमी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता या उनके नजदीकी रिश्तेदार आज जिन नामों से परिचित हैं, उनके शैक्षणिक रिकार्ड में कुछ और ही नाम हैं। कहीं कुमार लगा या हटा है, कहीं सरनेम जुड़ा या हटा है। किसी की डिग्री में कुछ नाम था और जनता के बीच उन्हें किसी दूसरे नाम से जाना जाता है। इस तरह के घटिया मुद्दों पर जनता को भ्रमित करने की राजनीति के बजाय राजनीतिक दल असली मुद्दों और काम पर समर्थन-विरोध क्यों नहीं करते? राजनीति में आने से पहले सरकारी नौकरी में रहते हुए अरविंद केजरीवाल की फाइलों का रिकार्ड और मुख्यमंत्री बनने के रिकार्ड को क्यों न देखा जाए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनके मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों का आकलन काम पर होना चाहिए।