चर्चाः एक बार फिर कारों को धक्का | आलोक मेहता
प्रदूषण रोकने के लिए बड़े शहरों में कारों के आवागमन पर अंकुश के अभियान बहुत कम देशों में सीमित दिनों के लिए चल पाए और विफल हो गए। चीन के एक दलीय कम्युनिस्ट राज अथवा फ्रांस की लोकतांत्रिक सरकार बीजिंग अथवा पेरिस में कारों पर अंकुश का फार्मूला स्थाई रूप से लागू नहीं कर पाई। सिंगापुर की कम आबादी और सक्षम यातायात की वजह से कुछ हद तक यह सफल रहा। लेकिन दिल्ली की दो करोड़ आबादी और 40 लाख से अधिक रजिस्टर्ड कारों के रहते केजरीवाल ने ‘स्विटजरलैंड के जनमत संग्रह और सर्वेक्षण’ वाले फार्मूले से यह निष्कर्ष निकाल लिया कि दिल्ली वाले ऑड-ईवन फार्मूले को लागू करना चाहते हैं। एक लाख के सर्वे की राय शेष 99 लाख पर लागू हो जाएगी। इसे कहते हैं – ए. के. का चमत्कार। दिल्ली विधानसभा चुनाव में विजय का एक साल 10 फरवरी को पूरा होते ही केजरीवाल ने सफलता के दावों की लिस्ट में ‘ऑड-ईवन फार्मूले’ पर जनता की मुहर दिखा दी। आंकड़े देते हुए उन्होंने 15 अप्रैल से 15 दिनों के लिए कारों पर नियंत्रण लागू कर दिया। साथ ही कहा कि ‘इसके बाद सरकार दिल्ली में स्थाई रूप से एक कार वाले को एक दिन छोड़कर कार का उपयोग करने वाला नियम लागू करने पर विचार करेगी।’ इरादे नेक हैं, लेकिन दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैला रहे कमर्शियल ट्रक, टेंपो, बाहर से आने वाली कारें, डीजल टैक्सियों पर नियंत्रण के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए जा सके हैं। कार वाले टैक्सी या दूसरी कार में चल लेंगे या मेट्रो में भीड़ को चार गुना कर देंगे। लेकिन स्कूटर, मोटर साइकिल वालों के प्रदूषण मुक्त वाहन के प्रमाण पत्र कितने चौराहों पर देखे जा सकेंगे? पूर्व और पश्चिम दिल्ली में प्रदूषण फैला रही औद्योगिक बस्तियों को कौन देखेगा? बहरहाल ‘एक धक्का और दो’ की राजनीति नए-नए रूप में आती रहेगी।