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24 May 2016

चर्चाः जश्न के साथ याद रहे जिम्मेदारी | आलोक मेहता

गूगल

पिछले 70 वर्षों में केंद्र और राज्यों में चुनावों के बाद कई नई सरकारें बनीं और प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल भी बढ़ते-घटते रहे हैं। नेहरू, इंदिरा, राजीव, अटल जैसे दिग्गज लोकप्रिय प्रधानमंत्री के लिए हर साल ऐसे जश्न नहीं हुए। जयललिता, ममता बनर्जी, मायावती, मुलायम या चंद्रबाबू नायडू, अरविंद केजरीवाल जैसे मुख्यमंत्रियों ने शपथ ग्रहण समारोह राजभवन से हटाकर मैदान या स्टेडियम पहुंचा दिए। आज गुवाहाटी में भगवा लहर की धूमधाम भी युद्ध के मोर्चे पर मिली विजय की तरह है। प्रधानमंत्री और वरिष्‍ठ केंद्रीय मंत्री ही नहीं भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के विशेष विमान गुवाहाटी उतरे हैं। चकाचौंध वाले मार्केटिंग युग में राजनीतिक दल और सरकारें निजी कंपनियों की तरह विज्ञापन एजेंसियों, इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों को करोड़ों रुपये देकर जश्न का इंतजाम करवाने लगी हैं। केजरीवाल केवल राजधानी दिल्ली शहर के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन यहां की सड़कों, यातायात, स्कूल-अस्पताल की सूचनाओं के विज्ञापन पर करोड़ों रुपया खर्च करके तमिलनाडु, केरल से गोवा तक छपवाते और दिखाते हैं। लोकतंत्र में चुनाव अवश्य पर्व की तरह होने चाहिए, ताकि मतदाताओं की अधिकाधिक भागेदारी हो। लेकिन नई सरकार बनने या उसकी वर्षगांठ के अवसर पर भारी धूमधाम और खर्च क्या दुनिया में निराला नहीं है। अमेरिकी राष्‍ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में रौनक होती है और स्‍थाई रूप से निश्चित स्‍थान पर अच्छी-खासी भीड़ होती है। लेकिन यह शो कुछ घंटों का होता है। इसके लिए पहले या चार साल पूरे होने तक कोई धूमधाम नहीं दिखती। मतदाता सरकार चुनने के साथ अपना कर्तव्य निभाते हैं और फिर अपेक्षा करते हैं कि चुनी हुई सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाएगी। सत्ता में आने के बाद जन कल्याण योजनाओं का क्रियान्वयन उनकी जिम्मेदारी है, कोई अहसान नहीं। इसलिए गुवाहाटी से चेन्नई और कोच्चि तक भारी संख्या में वोट देने वाले राज्य और केंद्र सरकार से जीवन-स्तर में सुधार और तरक्की की उम्मीद ही करते रहेंगे।

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TAGS: चुनाव, जीत, सरकार, जश्न, जयघोष, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, मोदी सरकार, दूसरी वर्षगांठ
OUTLOOK 24 May, 2016
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