Advertisement
09 July 2016

चर्चाः सोशल बनाम एंटी सोशल मीडिया| आलोक मेहता

गूगल

‘ट्विटर’ की संचालक कंपनी इस गोपनीयता को अपनी खासियत बताती है। इस वजह से असामाजिक, आपराधिक तत्व अथवा कुछ राजनीतिक-सांप्रदायिक संगठन भी अपना जाल बिछाकर समाज में घृणा पैदा कर रहे हैं। वर्तमान साइबर कानून कमजोर होने के कारण ऐसे लोग बचे रहते हैं। यूं कुछ संगठन और एक वर्ग विशेष अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सोशल मीडिया पर किसी तरह के अंकुश को अनुचित बता विरोध करता है। पिछले तीन-चार वर्षों के दौरान कुछ राजनीतिक दलों ने बड़ी धनराशि खर्च कर ‘ट्विटर’ पर दिन रात आक्रामक ढंग से प्रचार, नेताओं की छवि बनाने-बिगाड़ने और मौके-बेमौके लोगों को भड़काने के लिए खास डिजिटल फौज बना रखी है। जिम्मेदार नेता और पार्टियां इस माध्यम के दुरुपयोग और गालीगलौच की सीमा तक अपशब्दों के प्रयोग को लेकर विचलित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं तीन महीने पहले अपनी पार्टी से जुड़ी सोशल मीडिया की टीम के प्रमुखों को बुलाकर संयमित भाषा की सलाह दी है। लेकिन अब एक नया रास्ता निकला है। भाजपा, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस या अन्य किसी दल-संगठन इत्यादि के कथित समर्थक बनकर ‘ट्विटर’ खाता खोल लोग अनुचित, झूठे, भड़काऊ संदेशों की बाढ़ करने लगे हैं। महिलाओं के लिए शर्मनाक और धमकी भरे संदेश देने वालों पर अब तक कोई बड़ी कानूनी कार्रवाई भी नहीं हुई है। फेसबुक पर भी परस्पर विरोधी बयानबाजी में लोग सभ्य समाज की भाषा की सारी सीमाएं तोड़ रहे हैं। सांप्रदायिक या आतंकवादी संगठन तक इस सोशल मीडिया को ‘एंटी सोशल मीडिया’ की तरह इस्तेमाल कर हिंसा भड़का रहे हैं। ऐसी स्थिति में साइबर कानूनों पर पुनर्विचार एवं समय रहते इस खतरनाक हथियार का दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार के अलावा सामाजिक संगठनों को भी नए उपाय खोजने होंगे।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: मेनका गांधी, सोशल मीडिया, महिलाओं, अपमानजनक, टिप्पणी, समिति, ‘ट्विटर’, social media, menka gandhi, women
OUTLOOK 09 July, 2016
Advertisement