चर्चाः उनको पानी नहीं पैसा चाहिए | आलोक मेहता
वे स्वीमिंग पुल में नहाते हैं या देश-विदेश के समुद्री तट पर बिकनी पहनी महिलाओं के साथ नहाने का मजा लूटते हैं। यही कारण है कि महाराष्ट्र में दो-चार घड़े पानी के लिए तरसते लोगों की आवाज पर ध्यान देने के बजाय बीसीसीआई आईपीएल कराने पर अड़ी हुई है। अदालत ने फिलहाल मुंबई के प्रारंभिक मैच की अनुमति दे दी है, लेकिन अदालत की तीखी टिप्पणियां किसी भी समझदार-इज्जतदार व्यक्ति या संस्था को सही रास्ते पर ला सकती हैं। लेकिन नियम कानून और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों तक की सलाह को दरकिनार करने वाले क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के मालिकों को इज्जतदार पानी की परवाह कैसे हो सकती है? आईपीएल मौज-मस्ती का खेल है। फिर संचालकों का खजाना भरता है। भोली भाली जनता सिनेमा की तरह क्रिकेट में पहले से ‘फिक्सिंग’ की आशंकाओं के बावजूद परिणाम पर भरोसा कर लेती है। दुबई, हांगकांग, लंदन, सिडनी, जोहान्सबर्ग तक क्रिकेट पर नजर रखने वालों का पैसा लगा होता है और वसूली होती है। लातूर में पीने के पानी के लिए गंभीर संकट के बीच क्रिकेट के मैदानों पर लाखों लीटर पानी छिड़कने की चर्चा करने पर क्रिकेट के आका तर्क देते हैं कि गन्ने की फसल के लिए भी तो पानी लगता है, मुंबई या दिल्ली में भी तो नाच-गाना होता है। अब उन्हें कौन समझाए कि भारत के करोड़ों लोगों को मधुमेह की शिकायत नहीं है और गन्ने का रस लीवर सहित शरीर के अन्य अंगों को ठीक रखने में सहायक होता है। चीनी के आयात में कुछ नेता और अफसरों को दलाली मिल सकती है, लेकिन गन्ना उत्पादन से लाखों-किसानों-मजदूरों को चटनी के साथ गुड़-रोटी का इंतजाम हो जाता है। वैसे जब देश में चुनाव होने पर क्रिकेट का आईपीएल दक्षिण अफ्रीका में हो सकता है, तो महाराष्ट्र सहित कुछ राज्यों में सूखा होने पर दुबई या सिडनी में आईपीएल के अगले मैच क्यों नहीं स्थानांतरित हो सकते हैं?