चर्चाः खजाने की उदारता और कंजूसी | आलोक मेहता
केंद्र में भाजपा सरकार ने भी पिछले दो वर्षों में कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों में मोटे बजट का प्रावधान किया और पिछले दिनों यह तथ्य सामने आए कि नेताओं अथवा नौकरशाही की ढिलाई अथवा अति सतर्कता के कारण करोड़ों रुपये खर्च नहीं हुए। इसी तरह सोमवार को दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने नए वित्त वर्ष के बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन इत्यादि के लिए बड़ी धनराशि का प्रावधान घोषित किया जबकि पिछले वर्ष के बजट में की गई घोषणाओं के अनुसार न पर्याप्त स्कूल खुले और न ही अस्पताल स्थापित हुए। दिल्ली में शिक्षा पर करीब 10 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था के बावजूद सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की हालत खस्ता है। दूसरी तरफ सरकार शिक्षकों को विदेशों में शिक्षा-दीक्षा के लिए भेजना चाहती है। यूरोप और अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था भारत से बिल्कुल भिन्न है। स्कूल-कॉलेजों में छात्रों की संख्या सीमित होती है और शिक्षक भी उच्च शिक्षा के बाद भर्ती होते हैं। भारतीय शिक्षकों को अपने देश में ही अच्छी सुविधाओं और अनुभवी शिक्षाविदों के जरिये प्रशिक्षित किया जा सकता है। दिल्ली में सरकार और नगर-निगमों के दायित्व भी विभाजित हैं। इसी कारण सड़कों का निर्माण या मरम्मत में भी बजट प्रावधानों के विपरीत कुछ इलाकों की स्थिति दूरदराज के गांवों से बदतर होती है। पिछले 15 वर्षों में सरकारी अस्पतालों की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ी है। अब सरकार दावा कर रही है, लेकिन इसके लिए उसे हर क्षेत्र में योग्य डॉक्टरों-सहायकों की जरूरत होगी। असल में राजधानी के लिए केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और नगर-निगमों के बीच बहुत अच्छे तालमेल, ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ घोषित योजनाओं के क्रियान्वयन की आवश्यकता है। पारस्परिक विश्वास और समझबूझ से ही वायदे पूरे हो सकते हैं।