चर्चाः हेडली पर अमेरिकी छाया | आलोक मेहता
अब हेडली ने भारत की मुंबई विशेष अदालत से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आतंकवादी हमले की तैयारियों तथा लश्कर के प्रमुख साथी साजिद मीर एवं आई.एस.आई. से मिलते रहे निर्देशों और तैयारियों का पूरा विवरण दर्ज कराया है। भारतीय तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इन सबूतों के साथ भारत अब पाकिस्तान को कानूनी दस्तावेज देगा, ताकि वह आतंकी गिरोहों पर अंकुश लगाने के लिए समुचित कदम उठाए। जब हेडली की कानूनी प्रक्रिया में पांच साल से अधिक समय लग गया, तब पाकिस्तान के आई.एस.आई. एवं सेना की समानांतर सत्ता व्यवस्था से कबूलनामे और कार्रवाई की उम्मीद अपना दिल समझाने वाली बात है। इस कानूनी गवाही के तथ्यों की जानकारी अमेरिकी प्रशासन और भारत सरकार को पहले से रही है। इस दृष्टि से महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि अदालत में आतंकी हमलों के सारे सबूत मिल जाने के बावजूद अमेरिकी प्रशासन ने पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियां बंद करने के लिए कितना दबाव डाला? हेडली मुंबई में आतंकी हमले से पहले 8 बार भारत आया और मुंबई भी सात चक्कर लगाए। उस समय भारत में बैठे एफ.बी.आई. के अधिकारियों ने सतर्कता क्यों नहीं दिखाई? न्यूयार्क में 2001 के आतंकी हमले के बाद तो अमेरिकी एजेंसियां दुनियाभर में सक्रिय हो चुकी थी। हेडली के षडयंत्रों की भनक उन्हें न मिल पाने के लिए क्या अमेरिकी प्रशासन ने गलती स्वीकारी? यदि उस समय अधिकारी चूक गए, तो 2009 के बाद से अब तक अमेरिका पाकिस्तान के आतंकी संगठनों-खासकर लश्कर से जुड़े आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई में अहम भूमिका क्यों नहीं निभा पा रहा है। जब हेडली स्पष्ट शब्दों में हाफिज सईद और आई.एस.आई की आतंकवादी योजनाओं का विवरण दे रहा है, तो ओसामा बिन लादेन की तरह हाफिज सईद एवं अन्य आतंकवादियों को तत्काल गिरफ्तार कर पाकिस्तान या भारत में निरन्तर न्यायिक प्रक्रिया पूरी करवाकर सजा दिलवाने की कोशिश क्यों नहीं कर रहा है? वह कब तक भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में ‘मध्यस्थ’ या ‘दर्शक’ का रोल करता रहेगा?