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01 April 2016

चर्चाः नेताओं की कसमें, वायदे, वफादारी | आलोक मेहता

गूगल

लक्ष्य यह है कि अनुकूल वातावरण रहने पर पूरे प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू की जा सकेगी। महिलाओं के बड़े आंदोलन को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव में मद्य निषेध का वायदा किया था। शराब की बिक्री विभिन्न राज्य सरकारों के सरकारी खजाने में आय का बड़ा साधन रही है। इसलिए बिहार का यह क्रांतिकारी कदम नीतीश कुमार की विश्वसनीयता बढ़ता है। लेकिन गुजरात सहित अन्य राज्यों के पुराने अनुभव हैं कि मद्य निषेध कानूनन लागू करने पर शराब की अवैध बिक्री, जहरीली शराब के प्रयोग से अशिक्षित गरीब लोगों की मौत के खतरे भी बढ़ जाते हैं। शराब के वैध या अवैध धंधे में नेता, अफसर, पुलिस और माफिया के गठजोड़ की बदनामी भी रही है। इसी तरह पिछले दशक में राजनीतिक दलों की अपनी सदस्यता नियमावली चुनावी वायदों और जय-पराजय के साथ वफादारी बदलने का सिलसिला बढ़ता गया है। यूं देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी की सदस्यता लेने के साथ पार्टी की नियमावली में मद्य निषेध स्वीकारने का नियम जुड़ा रहा है। लेकिन कितने कांग्रेसजन नियमावली और शपथ पत्र को याद रखते हैं? इसी तरह राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जनसंघ या भाजपा में पहुंचे स्वयंसेवक और नेता शराब-मांस भक्षण से बिल्कुल परहेज करने की प्रतिबद्धता से जुड़े माने जाते हैं, लेकिन पिछले वर्षों में उसी पार्टी के नेता बहुत बदल गए हैं। बिहार विधानसभा में शपथ लेने वाले विधायक गांधीवादी हों या दीनदयाल उपाध्यायवादी अथवा राममनोहर लोहिया के अनुयायी क्या अपनी कसम के अनुरूप शराब से पूरी तरह दूर रह सकेंगे? शराब से कार्यकर्ता ही नहीं मतदाता की वफादारी बनाने की बुरी आदत क्या जिम्मेदार राजनैतिक दल और नेता छोड़ पाएंगे?

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TAGS: बिहार विधानसभा, सदस्यों की शपथ, शराब बंदी, पाटलिपुत्र, ग्रामीण इलाके, विदेशी शराब, देशी शराब
OUTLOOK 01 April, 2016
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