चर्चाः चाहे कोई हमें जंगली कहे। आलोक मेहता
कभी पटना, गया में अपराध होने की स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर ‘जंगल राज’ का विरोध करते हुए जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री ही तत्काल बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करते हैं। इसी तरह बनारस, लखनऊ, कानपुर, नोएडा, मथुरा में अपराध होने पर ‘जंगल राज’ को खत्म करने के लिए शीर्षस्थ भाजपा नेता दहाड़ते हैं। दिल्ली के बाद चंडीगढ़, लखनऊ से बंगलूर तक राजनीतिक फतह के आकांक्षी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया- ‘दिल्ली में जंगल राज है। नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार विफल है, क्योंकि यहां अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं। एक बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या हो गई। दो लड़कियों के साथ बलात्कार हो गया।’ यही केजरीवाल 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के विरुद्ध अभियान छेड़ते हुए कहते थे कि ‘कानून-व्यवस्था के लिए वह अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकतीं।’ इसमें कोई शक नहीं कि कानून-व्यवस्था राज्य सरकारों के अधीन होती है और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने के कारण पुलिस प्रशासन केंद्र सरकार और उप राज्यपाल के मातहत है। लेकिन किसी मोहल्ले में चोरी, हत्या की घटना के लिए क्या किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को दोषी करार दिया जा सकता है? अपराधों की रोकथाम और पुलिस व्यवस्था मजबूत करने के लिए हरसंभव कदम उठाए जाने चाहिए। लेकिन महत्वपूर्ण पदों पर बैठे नेता यदि किसी शहर को बेहद असुरक्षित और जंगल राज की बात करते हैं, तो अप्रत्यक्ष रूप से उस इलाके के नागरिकों के बड़े वर्ग को ‘जंगली’ या जंगल राज में नारकीय जिंदगी सहने वाला निरूपित करते हैं। अपराध होने पर क्या सरकारें ही बदली जा सकती हैं? डिजिटल क्रांति का उपयोग करने वाले राजनेता जरा रिकॉर्ड खोलकर देख लें, तो न्यूयॉर्क, लंदन, पेरिस जैसे अत्याधुनिक शहरों में भी हत्या-अपराध की घटनाएं कम नहीं होतीं। अमेरिका में तो स्कूलों में घुसकर बर्बरतापूर्वक मासूम बच्चों को गोलियों से भूने जाने की घटनाएं हो चुकी हैं। फिर भी वहां किसी नेता ने ‘जंगल राज’ कहकर यह सलाह नहीं दी कि उस शहर में जाना बड़ा खतरा मोल लेना है। आखिरकार, भारत के कई प्रमुख शहर पर्यटकों के लिए बड़े आकर्षण हैं। यदि राजनीतिक आधार पर उन्हें असुरक्षित घोषित किया जाता रहा, तो क्या हम सब कलंकित नहीं होंगे?