चर्चाः असुरक्षित क्यों हैं सुरक्षा बल | आलोक मेहता
श्रीनगर इलाके में आज दो आतंकी हमलों में पुलिस के तीन जवान मारे गए। रविवार को मणिपुर में अतिवादियों ने असम राइफल्स के 6 जवानों को मार दिया। इसी क्षेत्र में पिछले साल डोंगरा रेजीमेंट के 17 सैनिकों को अतिवादियों ने मार दिया था। रविवार को असम राइफल्स के जवान उस समय मारे गए, जब वे अपनी ड्युटी पूरी करके छावनी में लौट रहे थे। हमलों से अधिक खतरनाक घटना छत्तीसगढ़ की है, जहां एक नक्सल अतिवादी बीजापुर क्षेत्र के पुलिस थाने में ’समर्पण’ के नाम पर घंटों रहने के बाद चकमा देकर अत्याधुनिक ए.के.-47 मशीनगन लेकर भाग गया। खतरनाक अतिवादी पर सुरक्षा बल आसानी से भरोसा कैसे कर सकते हैं? छत्तीसगढ़, झारखंड में नक्सली हमलों पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श करती रही है। फिर भी कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों के नाम पर होने से संसाधनों की कमी बनी रहती है। दुनिया के किसी भी देश में आतंकवादी-अतिवादी से निपटने का दायित्व स्थानीय प्रशासन पर नहीं छोड़ा जाता। जहां जरूरत होती है, सेना के जवान तैनात कर दिए जाते हैं। भारत में सेना की सहायता गंभीर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अब तक नहीं ली जा रही है। नतीजा यह होता है कि पुलिस के जवान बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं। ये अतिवादी कश्मीर से सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों से ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। यदि तुलनात्मक आंकड़े देखे जाएं, तो कश्मीर की तुलना में नक्सल क्षेत्रों में सुरक्षा बल के जवान अधिक मारे गए हैं। इस दृष्टि से पुराने नियमों और रवैये पर पुनर्विचार करने के साथ माओवादी अपराधियों से निपटने के लिए विभिन्न राज्यों में पुलिस के साथ अर्द्धसैनिक सुरक्षा बलों एवं वायु सेना के विमान-हेलीकाप्टर का उपयोग कर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया जाना चाहिए। इससे माओवादियों से आतंकित लाखों ग्रामीणों को राहत मिलेगी और विकास के कार्य भी हो सकेंगे।